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तप से हो जाते हैं कोटि-कोटि भवों के पाप क्षीण
स्थानीय तेरापंथ भवन में पचरंगी तप का नयनाभिराम कार्यक्रम 'शासनश्री' साध्वी जिनरेखा जी के सान्निध्य में भव्य रूप से संपन्न हुआ। इस अवसर पर पचरंगी तपस्वियों का अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में साध्वीश्री ने कहा कि पचरंगी तप श्रमण संस्कृति की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने वाला विशिष्ट तप है। जैन धर्म में यह उच्चकोटि की तपस्या मानी जाती है, जो आत्मशुद्धि, कर्म क्षय और मोक्षमार्ग में सहायक होती है। यह तप पांच प्रमुख तपों का संगठित रूप है, जो साधक को विशेष पुण्य, आत्मबल एवं आत्मानुभूति प्रदान करता है। जैसे सोने को अग्नि में तपाकर उसकी अशुद्धियाँ हटाई जाती हैं, वैसे ही तपस्वी तप रूपी अग्नि में तपकर स्वयं को पवित्र करता है, जिससे कोटि-कोटि भवों के पाप क्षीण हो जाते हैं और शरीर कुंदन जैसा बन जाता है।
साध्वी श्री मधुरयशाजी, साध्वी श्वेतप्रभाजी, साध्वी धवलप्रभाजी एवं साध्वी मार्दवयशाजी ने पंचरंगी तप की अनुमोदना में मधुर गीतिकाओं का संगान कर तपस्वियों का उत्साहवर्धन किया। सभा अध्यक्ष राकेश जैन ने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से जिनशासन की प्रभावना बढ़ती है। कार्यक्रम का मंगलाचरण रवीना लोढ़ा ने किया। महिला मंडल एवं कन्या मंडल द्वारा सामूहिक गीत की सुंदर प्रस्तुति दी गई। महिला मंडल अध्यक्ष अनिता जैन, अक्षय चौपड़ा, वारिस मेहता, प्रियंका गोलेच्छा, अमृत बालड़, भावना छाजेड़ एवं मंजू कवाड़ सहित अन्य वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम का कुशल संचालन साध्वी श्वेतप्रभा जी ने किया।