
रचनाएं
भिक्षु का तेरापंथ
जैन धर्म के उपवन में भिक्षु ने, पौधा छोटा-सा एक लगाया,
लगन, मेहनत, कर्मठता से उसको सींचा, संवारा, पेड़ बनाया।
बिना लक्ष्य निकले जन क्रांति को, फिर तेरापंथ का नाम मिला,
विरोधों के कितने तूफान आए, वो अडोल खड़ा, न तनिक हिला।
कभी न मिला आहार तो, कभी रहने को भी जगह नहीं,
परिवर्तन, जन क्रांति में हरदम, आती मुश्किलें — यह बात सही।
किया चिंतन, लेने लगे आतापाना, करना है खुद का कल्याण,
कहा संतों ने — छोड़ो यह सब, करना है आपको जनकल्याण।
लगे समझाने, जन-जन प्रभावित, उनकी बातों में क्या जादू,
मिटी भ्रांतियां, मिटी शंकाएं, अब भिक्षु कहलाए सच्चे साधु।
बसने लगा जन-जन के मानस में, तेरापंथ धर्मसंघ है न्यारा,
एक गुरु के निर्देशन में चलता, संत, सतियां, समाज भी सारा।
त्रिशताब्दी भिक्षु जन्मोत्सव पावन, महासंत को शत-शत वंदन।
भारमल, जयाचार्य, तुलसी, महाप्रज्ञ से, आचार्यों का पावन शासन,
धर्मसंघ मधुबन-सा महक रहा, महाश्रमण का कुशल अनुशासन।
ऐसे पावन तेरापंथ संघ पर करते अपना तन-मन सब अर्पण।