भिक्षु को समझो और समझाओ

रचनाएं

साध्वी रचनाश्री

भिक्षु को समझो और समझाओ

भिक्षु को समझो और समझाओ, तेरापंथी होने का गौरव गाओ।
1. वीर भिक्षु ने गण की नींव लगाई, महल मनोहर है सुखदाई।
शीतघर सी शीतलता पाओ।।
2. दान - दया का पाठ पढाया, साध्य- साधन का पथ दिखलाया।
मोक्ष महल की सीढ़ी चढ जाओ।।
3. लौकिक दया को धर्म न मानों, लोकोतर को तुम सब जानो।
आत्मशुद्धि के पथ पर बढते जाओ।।
4. दवा आँख की आँख में डालो, डाल जीभ पर मत दुःख पाओ।
सम्यक् दृष्टिकोण बनाओ।।
5. सम्यक् दर्शन मुक्ति का द्वार है आला, पाता है कोई किस्मत वाला,
तेरापंथ पा भाग्य सराओ।।
6. घी तम्बाकू एक नहीं है, मिश्र का कोई मूल्य नहीं है।
भेद क्षीर-नीर का कर सुख पाओ।।
7. मर्यादा व्यव्स्था देने वाले, गण गणिवर का मूल्य बढाने वाले।
गणी आज्ञा में बढते जाओ।।
8. महाश्रमण का नेतृत्व सुहाया, पथ दर्शन करते रहते सवाया।
भिक्षु चेतना वर्ष मनाओ।।
लय - वार्षिक मर्यादोत्सव आया