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आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में, तेरापंथ भवन के विशाल हॉल में, श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति के बीच आचार्य भिक्षु की जन्म-त्रिशताब्दी एवं बोधि दिवस का शुभारंभ मंगलमय कार्यक्रम के साथ हुआ। साध्वी अणिमाश्री जी ने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए कहा— 'आज के ही दिन रेगिस्तान की सूखी धरती पर एक सदाबहार मंदार खिला था। वह मंदार सत्यनिष्ठा, आगम-निष्ठा, आचार-निष्ठा एवं शुद्ध साध्वाचार के महनीय पल्लवों से सुशोभित था। उसी मंदार की शीतल छाया में तेरापंथ का जन्म हुआ। मरुधर के मंदार—आचार्य भिक्षु—के करकमलों से वपित एवं सिंचित यह तेरापंथ धर्मसंघ आज वटवृक्ष बन चुका है, जो असंख्य मुमुक्षुओं का आधार एवं शरणस्थल बन रहा है। आचार्य भिक्षु का जन्म केवल एक व्यक्ति का जन्म नहीं, अपितु एक क्रांति का जन्म था—आगम-ज्योति, सत्यनिष्ठा और धर्म चेतना का अवतरण था। युगद्रव्य एवं युगसृष्टा आचार्य भिक्षु के जीवन में हजारों गुण समाहित थे। हमारा उद्देश्य केवल उन गुणों के व्याख्याता बनना नहीं, अपितु गुणधर्मी बनकर उन्हें आत्मसात करना है, जिससे जीवन ज्योतिर्मय बन सके। आचार्य भिक्षु की समता और सकारात्मक चिंतन—यदि केवल ये दो गुण भी हमारे जीवन में अवतरित हो जाएं, तो हम आनंदमय जीवन जी सकते हैं। डॉ. साध्वी सुधा प्रभा जी ने कहा—'आचार्य भिक्षु की बोधि जागृत थी। वे ज्ञान-बोधि, दर्शन-बोधि एवं चारित्र-बोधि से संपन्न महापुरुष थे। उनकी बोधि की निष्पत्ति ही हमारा तेरापंथ है। साध्वी समत्वयशा जी ने सुमधुर भक्ति स्वरों द्वारा भावाञ्जलि अर्पित की। साध्वी मैत्री प्रभा जी ने अपने भावों की सुंदर प्रस्तुति दी। नम्रता संकलेचा ने मंगल संगान प्रस्तुत किया। मंच संचालन साध्वी कर्णिकाश्री जी ने किया।