आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

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संगरूर

आचार्य भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष, वर्षावास स्थापना एवं तेरापंथ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विविध आयोजन

साध्वी प्रांजलप्रभा जी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन, संगरूर में भिक्षु चेतना वर्ष के प्रथम चरण का त्रिदिवसीय कार्यक्रम श्रद्धा एवं भक्ति के साथ आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगल मंत्रोच्चारण एवं त्रिपदी वंदना के साथ हुआ। केन्द्र द्वारा निर्दिष्ट भक्ति गीत 'भिक्षु म्हारे प्रगट्या जी...' का सामूहिक संगान किया गया। साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा— 'आचार्य भिक्षु का जीवन उदितोदित था। उन्होंने स्वयं प्रकाशमय जीवन जिया और जगत को अध्यात्म का प्रकाश प्रदान किया। आषाढ़ी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गुरु—ज्ञानदाता—की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा भी कहा जाता है: 'जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं', क्योंकि माता केवल जन्म देती है, परंतु गुरु जीवन देते हैं। आज ही के दिन आचार्य भिक्षु ने भाव दीक्षा ग्रहण कर तेरापंथ सम्प्रदाय की स्थापना की और उसी के फलस्वरूप तेरापंथ धर्मसंघ को आचार्य भिक्षु जैसे महान गुरु प्राप्त हुए। आचार्य भिक्षु में संयम की गरिमा, सत्य की गुरुता एवं तितिक्षा का गौरव था। ऐसे गुरु को पाकर चतुर्विध संघ आध्यात्मिक विकास के शिखर को छू रहा है।'
इस त्रिदिवसीय समारोह के दौरान संगरूर में ॐ भिक्षु जय भिक्षु का अखंड जाप चलता रहा। साध्वी गौतमप्रभा जी ने सुमधुर भक्ति गीत की प्रस्तुति दी, वहीं साध्वी मध्यस्थप्रभा जी ने कविता के माध्यम से अपने भावों को अभिव्यक्त किया। स्थानीय श्रावक-श्राविका समाज द्वारा 'तेरापंथ का उत्सव' शीर्षक से एक रोचक नाटक प्रस्तुत किया गया। महिला मंडल की अध्यक्षा सुशीला जैन एवं अन्य भाई-बहनों ने गीत, वक्तव्य एवं अन्य प्रस्तुति के माध्यम से अपने आराध्य के प्रति अभ्यर्थना अर्पित की। कार्यक्रम का सुंदर एवं प्रभावशाली संचालन प्रज्ञा जैन ने किया।