
रचनाएं
शासनश्री' मुनिश्री रवीन्द्र कुमारजी के प्रति
तुलसी गुरु कर कमल से, दीक्षा की स्वीकार।
शासन माता साथ में, नगर केलवा द्वार।।
अग्रगण्य बनकर किया, धर्म संघ का काम।
सजग साधना में सतत, मुनिवर आठों याम।।
महाप्रज्ञ महाश्रमण की, कृपा मिली अपार।
सहयोगी हर कार्य में, मुनिवर अतुल कुमार।।
जन्में भी मेवाड़ में, वहीं बने थे संत।
देवलोक मेवाड़ में, बना सुनहरा ग्रंथ।।
कर उत्तरोत्तर साधना, प्राप्त करें शिवपंथ।
'कमल' हृदय की भावना, हो भव-भव का अंत।।