जीवन विज्ञान से विद्यार्थी का मानसिक और भावनात्मक विकास होता है : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 17 नवंबर, 2012
मंगलभावना समारोह के कार्यक्रम में महापरिव्राजक, अध्यात्म योगी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि पुरुष अनेक चित्त वाला होता है। हमारे भीतर भाव जगत भी है। हमारे जीवन में जहाँ शरीर, वाणी, मन, इंद्रियाँ, पर्याप्तियाँ-प्राण, आत्मा और कर्म है। कार्मण और तेजस शरीर भी है। यों अनेक चीजों से घटित अनेक घटक तत्त्वों से बना हुआ यह हमारा जीवन है।
संक्षेप में आत्मा और शरीर इन दो को भी या जड़ और चेतन इन दो को ही हमारे जीवन के मूल आधारभूत तत्त्व माना जा सकता है। हमारे भीतर भाव भी उभरते रहते हैं। विरोधी भाव भी व्यवहार में प्रकट हो जाते हैं। आदमी के भीतर अहिंसा का भाव भी है। और हिंसा का भाव भी सामान्य आदमी में आ जाता है। हमारे भीतर असद् और सद् इन दोनों का अस्तित्व है। हमारा प्रयास यह होना चाहिए, हम असद् से सद् की ओर आगे बढ़ें। असंयम को छोड़ संयम को स्वीकार करें। अज्ञान को छोड़ ज्ञान को और मिथ्यात्व को छोड़ सम्यक्त्व को स्वीकार करें। अबोधि को छोड़ बोधि को स्वीकार करें। आज कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी, जीवन-विज्ञान दिवस है। जीवन-विज्ञान आचार्य श्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की विशेष देन है। आचार्य भिक्षु की जन्म और देवलोक की मासिक तिथि है। भगवान महावीर की भी मासिक जन्मतिथि है। भगवान महवीर और आचार्य भिक्षु में कई नैसर्गिक समानताएँ हैं। जन्मतिथि, शादी और संतान में समानता है। आज ही के दिन आचार्यश्री तुलसी ने मुनि नथमलजी टमकोर को महाप्रज्ञ अलंकरण प्रदान किया था। बाद में महाप्रज्ञ नाम दिया गया था। महाप्रज्ञ आगमिक शब्द है। आचार्य महाप्रज्ञ जी तो महान प्रज्ञा के धनी और विद्वान थे। जीवन-विज्ञान जीने का विज्ञान है। शिक्षा जगत के लिए खासकर यह जीवन-विज्ञान है। विद्या संस्थाओं में विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करते हैं। शिक्षक ज्ञान देते हैं। शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक व शिक्षण संस्थाओं के संचालन का ये योग है। माता-पिता के मन में कोई उम्मीद होती है। वे अपने बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में इसलिए भेजते हैं कि हमारा बच्चा ज्ञानवान बने, आत्मनिर्भर बने और संस्कारी बने। ये तीनों उम्मीदें विद्या संस्थानों द्वारा पूरी की जाती हैं, तो अभिभावक संतुष्ट हो सकते हैं। जीवन-विज्ञान बताता है कि विद्यार्थी के शारीरिक, बौद्धिक विकास के साथ मानसिक और भावनात्मक विकास भी हो। मानसिक और भावनात्मक विकास विद्यार्थी में हो यह जीवन-विज्ञान का लक्ष्य है। विद्यार्थी में नैतिकता, नम्रता के संस्कार आएँ इसके लिए जीवन-विज्ञान अच्छा माध्यम बन सकता है। बालक और पालक आगे बढ़े तो यह जीवन-विज्ञान दिवस एक प्रेरणा देने वाला बन सकता है। जीवन-विज्ञान का उपयोग हो, विद्यार्थी आगे बढ़े, यह मंगलकामना। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि गौतम बुद्ध प्रवचन करते थे। प्रवचन से परिवर्तन हो सकता है। महान पुरुषों का सान्निध्य जीवन बदलने वाला होता है। प्रवचनकार जैसा कहता है, वैसा ही उसका आचरण होना चाहिए, तभी वह प्रभावी बन सकता है। जीवन-विज्ञान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मनन कुमार जी ने जीवन-विज्ञान के बारे में समझाया।