
रचनाएं
भिक्षु स्वाम महा उपकारी
भिक्षु स्वाम महा उपकारी, भिक्षु रा म्हें हां आभारी।
अंतर मन जुड़गी थांस्यू इकतारी।
तेरापंथ शासन री जावां म्हें बलिहारी।
हो भिक्षु ! म्हा भक्तां री थे तो भव स्यूं नैया तारी।।
आत्माराधन करणे खातिर जिनवाणी री लौ लागी।
दृढ संकल्प री शक्ति स्यूं आफत भी भागण लागी।
अनुपम अणगार बणकर करणो आत्मा रो निस्तार है।
सच्चाई री खोज करूंगा सच्चाई विस्तार है।
तड़फ अनूठी मन में जागी, पाऊं जिनवर रूप सागी।
'अप्प दीवो भव' बणणे री करणे लाग्या त्यारी।।
(दुनियां में सुवास देवण लागी तेरापंथ फुलवारी।।)
सूक्ष्म बुद्धि स्यूं आगम पढ़-पढ़ गहरा तार थे खींच्या।
सच्ची श्रद्धान देकर जन-जन रा मन उपवन सींच्या।
शूलां रे पथ ने फूलां री, शय्या सुखकर थे मानी।
हर प्रतिकूलता ने अनुकूलता में थे ढाली,
उद्धरण देता तगड़ा तगड़ा।
मेट्या जन-जन रा थे झगड़ा।
थांरी रहमत स्यूं म्हारी मेहनत टलगी सारी।।
चिंतन रो चातुर्य निरालो साहस सूर वीरां रो।
संघर्ष में अटल हिमालय, धीरज धरती धीरां सो।
थांरी गादी रो प्रभाव, धारी भारी गुण गावे।
थाने आगे राख ई गण री महिमा महकावे।
कुण करपावे थारी होड़।
बणादी राजमार्ग सी रोड़।
नंदन वन में मौज उड़ावां खिलगी तकदीर म्हारी।।
महातपस्वी महाश्रमिक महाश्रमण रो बरतारो।
मुख्यमुनि साध्वीप्रमुखा साध्वीवर्या रो है स्हारो।
हंसतो खिलतो धर्म संघ ओ मर्यादा में चालै है।
भिक्षु थांरे इंगित पर गण गणिवर सारा हालै है।
सात हाथ री सोडां सौवां।
बाटड़ली म्हे थांरी जोवां।
जिन शासन में फैली है इ शासन री महिमा भारी।।
लय - तेरापंथ रो भाग्य विधाता