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तेरी यादें छाई
बीदासर हेम शताब्दी की पुण्यवेला में मेरी दीक्षा आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के कर-कमलों से हुई। दीक्षित हुए तीन ही दिन हुए थे और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने मुझे साध्वी उज्ज्वलरेखा जी को वंदना करवा दी।
मेरे संसार पक्षीय पिताजी श्रद्धानिष्ठ श्रावक देवराज जी ढेलड़िया बहुत खुश थे कि मेरी पुत्री को वयोवृद्धा साध्वी बिदामां जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ है। सुदीर्घजीवी शासनश्री साध्वी बिदामां जी ने मुझे साधु जीवन की हर चर्या को सिखाया — कैसे बैठना, कैसे सोना, कैसे बोलना, कैसे भोजन करना। वे मेरी हर चर्या को सम्यक बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया करती थीं। साध्वी बिदामां जी मेरी दादी मां के समान थीं। वे बहुत बार दूसरे ग्रुप की साध्वियों को बताती रहती थीं कि गुरुदेव ने महती कृपा कर इसे तीन दिन की दीक्षित को ही हमारे साथ भेज दिया। मेरे पर गुरु की महान कृपा है। शैक्ष साध्वियों में संस्कारों का बीजारोपण करने की अच्छी कला थी। वे वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थीं। हम सब साध्वियों पर वात्सल्य रस बरसाती रहती थीं।
पिछले कुछ वर्षों में वे काफी अस्वस्थ रहने लग गई थीं। तब से मुझे सीमा कहकर बुलाने लगी थीं। मधुर वाणी, कोमल हृदय, करुणा का भाव उनके दिल में बहता रहता था। वे हमें सीखना, चितारणा आदि की पल-पल प्रेरणा प्रदान करती रहती थीं। 103वें वर्ष के पश्चात उनसे स्वतः स्वाध्याय नहीं होता था। तब से हम साध्वियों से दशवैआलियं, आराधना, चौबीसी, आचारबोध, संस्कारबोध, व्यवहारबोध, तेरापंथ प्रबोध, महाप्रज्ञ प्रबोध आदि का स्वाध्याय श्रवण करती थीं। जब स्वाध्याय की सम्पन्नता हो जाती, सुनाने वाली साध्वी उठने लगती तो वे फरमातीं — 'बाई! बहुत कृपा करी, अब मेरा जीसोरा हो गया।' स्वाध्याय श्रवण से उनकी वेदना गायब हो जाया करती थी।
ऐसी पुण्यात्या के चरणों में मेरा इन शब्दों से भावार्पण—
भैक्षवगण नन्दनवन की पाई तुमने शीतल छाया।
सुदीर्घजीविता का इतिहास रचाकर यशोध्वज फहराया।।
1. तेरे जीवन का पल-पल था, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्,
तुमने इच्छामृत्यु वरी हुआ भाग्योदय से सद्कर्म।
है दिव्य लोक की मूर्त तुमने मंजिल को महकाया।।
2. गांव शहर और विदेशों से भी आते लोग हजार,
मंगलिक तुझ मुख से सुनकर होता हर्ष अपार।
कल्याणी वाणी से तुमने कितनों को सन्मार्ग दिखाया।।
3. अनशन प्रत्याख्यान किया तब, इन्द्रदेव ने मेह बरसाया,
अनशन सम्पन्नता पर भी रिमझिम रिमझिम कर हर्षाया।
बैकुंठ यात्रा और चिता पर दृश्य अनूठा जन-जन चकराया।।
4. दिल में तेरी यादें छाई, भूल तुम्हें न मैं पाऊँ,
इधर उधर में ढूंढ रही पता नहीं मैं कहां जाऊँ।
श्रद्धार्पण करते सतिवर, मेरा मानस मुरझाया।।