
रचनाएं
कहाँ हो तुम कहो ना
सुदीर्घजीवी साध्वी बिदाम से, जुड़ गया मन का तार।
हुई रवाना झटपट यों तुम, कर पल में पलकार,
कि सब कुछ सूना-सूना, कहाँ हो तुम कहो ना।।
1. चारों दिशा में फैली गुण की परिमल।
संयम की साधना से जीवन निर्मल।
आकर्षक वो व्यक्तित्व तुम्हारा, था मधुरिम व्यवहार ।।
2. उर्वर था मस्तिष्क तेरा, कर में कला थी।
संस्कारों की घूंटी, मुझको पिलाती।
'चएज्ज देहं न हु धम्मसासणं', सूक्त किया साकार ।।
3. निष्ठा गुरु की, गण की, मन में थी गहरी।
जागरुकता पल-पल, आत्मा के प्रहरी ।
वत्सलता की मूरत थी तुम, ना कृपा का पार ।।
4. गुणग्राहकता तेरी, हम अपनाएं।
जो कुछ मिला था तुमसे, भूल न पाएं।
शब्द नहीं, व्यक्त करूँ मैं, कैसे अब आभार ।।
5. अनशन करके मन का, अरमां फला है।
कालू की धरती को मौका मिला है।
इतिहास विलक्षण सतिवर तुमने, सफल किया अवतार ।।
लय - स्वर्ग से सुंदर