‘मुणिन्द मोरा’ चमत्कारी ढाल पर भव्य कार्यक्रम

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कोलकाता।

‘मुणिन्द मोरा’ चमत्कारी ढाल पर भव्य कार्यक्रम

मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में ‘मुणिन्द मोरा’ विषय पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा (कलकता-पूर्वांचल) ट्रस्ट द्वारा भिक्षु विहार में किया गया। कार्यक्रम में वृहत्तर कोलकाता के श्रावक-श्राविकाएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। मुनि जिनेश कुमार जी ने अपने प्रवचन में बताया कि तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य जीतमल जी सिद्धहस्त कवि, साधक और महान ध्यानयोगी संत थे। उन्होंने राजस्थानी भाषा में साढ़े तीन लाख पद्य रचकर साहित्य को समृद्ध किया। वे विधिवेत्ता, आगमवेत्ता, तत्वज्ञानी, आशुकवि और कर्मठ योगी थे।
वि.सं. 1914 में बीदासर में प्रवास के दौरान पश्चिम रात्रि में एक दैविक उपद्रव के तहत अंगारों की वर्षा हुई, जिससे सभी संत बेहोश हो गए। ऐसे समय में आचार्य जीतमल जी ने आचार्य भिक्षु आदि महापुरुषों का गुणोत्कीर्तन करते हुए ‘मुणिन्द मोरा’ ढाल की रचना की। ढाल पूर्ण होते-होते उपद्रव शांत हो गया। तब से इसे चमत्कारी माना जाता है, और विश्वास है कि इसका संगान-स्मरण संकटों को दूर कर मन को समाधिस्थ करता है।
मुनि जिनेश कुमार जी ने इस घटना का विस्तार से वर्णन करते हुए बीदासर क्षेत्र और उसके दृढ़धर्मी श्रावक समाज की प्रशंसा की। मुनि परमानंदजी ने अपने विचार व्यक्त किए, जबकि मुनि कुणाल कुमार जी ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर सामूहिक ‘मुणिन्द मोरा’ संगान से वातावरण को भक्तिमय बना दिया। विशेष रूप से बीदासर श्रावक समाज के विवेक दुगड़ ने गीत का संगान किया।
पूर्वांचल सभा द्वारा तपस्वियों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पूर्वांचल तेरापंथी समाज की सभी शाखाओं के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ताओं का विशेष योगदान रहा।