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शक्रस्तुति पाठ का अनुष्ठान
'शासनश्री' साध्वी सत्यवतीजी के सान्निध्य में शक्र स्तुति पाठ (सक्कथुई) का अनुष्ठान एवं आपसी वात्सल्य व प्रेम का पर्व रक्षा बंधन कार्यक्रम आयोजित किया गया। देवताओं द्वारा एक मात्रा में की जाने वाली यह स्तुति, जिसे तीन नामों से जाना जाता है— प्रणिपात सूत्र, शक्र स्तुति एवं णमोत्थुणं — नमस्कार महामंत्र और मंगल पाठ के बीच की कड़ी स्वरूप स्तुति है, जो सिद्धालय में स्थित सिद्धों के प्रति समर्पित की जाती है। 'शासनश्री' साध्वी सत्यवती जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि तीर्थंकरों के गुणगान से प्रमोद भावना जागृत होती है और हम उनके गुणों को अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। साध्वी शशिप्रज्ञा जी ने पाठ का अनुष्ठान करवाते हुए कहा कि अनन्त शक्ति के स्रोत की स्तुति के माध्यम से हम संक्रमण के सिद्धान्त की उपयोगिता को समझ सकते हैं और उस शक्तिशाली ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं। अनुष्ठान एवं रक्षा बंधन के इस कार्यक्रम में जहाँ एक ओर तीर्थंकरों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति हो रही थी, वहीं दूसरी ओर रक्षा बंधन आपसी वात्सल्य को प्रगाढ़ कर रहा था। मंगलाचरण सरिता बैद ने किया। इस वात्सल्य को अभिव्यक्त करने हेतु कन्या मंडल ने प्रस्तुति द्वारा इसे उद्घाटित करने का प्रयास किया।