'महिमा जन्मदाता की' कार्यशाला का आयोजन

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पल्लावरम, तमिलनाडु।

'महिमा जन्मदाता की' कार्यशाला का आयोजन

तेरापंथ भवन, पल्लावरम में मुनि दीपकुमारजी के सान्निध्य में ‘महिमा जन्मदाता की’ कार्यशाला का सुंदर आयोजन किया गया। मुनिश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि माँ-पिता का रिश्ता संसार का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता है, क्योंकि यह रिश्ता जन्म से 9 माह पहले ही प्रारंभ हो जाता है। वे लोग सचमुच भाग्यशाली होते हैं, जिनके सिर पर माता-पिता का साया होता है। माता-पिता बूढ़े वृक्ष की तरह होते हैं, जो भले ही फल न दें, परंतु छाया अवश्य देते हैं। उन्होंने कहा कि पृथ्वी विशाल है, आकाश असीमित है और ब्रह्मांड अनंत है, किंतु माता-पिता की महानता और विशालता इन सबसे अधिक है। ‘माँ’ – यह शब्द भले ही छोटा हो, किंतु अपने भीतर वात्सल्य, ममता और भावनाओं का असीम भंडार समेटे हुए है। माता-पिता की असली पहचान उनके बच्चे होते हैं, जिनमें उनके संस्कार सहज ही झलकते हैं। बच्चा नागरिकता का पहला पाठ माँ के स्नेह और पिता के संरक्षण में ही सीखता है। मुनि श्री ने वर्तमान समय की ओर संकेत करते हुए कहा कि आज के परिवेश में माता-पिता अपने मूल स्वरूप को कहीं न कहीं भूलते जा रहे हैं। बच्चों को पर्याप्त समय, संस्कार और संरक्षण न मिल पाना एक गहरी विडंबना है। मुनि काव्यकुमारजी ने भी अपने विचार रखते हुए कहा कि जिस प्रकार हम दवाईयों पर विश्वास करते हैं, वैसे ही माता-पिता पर भी पूर्ण विश्वास करना चाहिए। वे भले ही कभी कठोर प्रतीत हों, परंतु उनका हर मार्गदर्शन बच्चों के लिए कल्याणकारी होता है। इस अवसर पर तेरापंथ किशोर मंडल, चेन्नई के सदस्यों ने भी सहभागिता की। साथ ही साध्वी बिदामांजी की स्मृति सभा का आयोजन कर श्रद्धापूर्वक उन्हें स्मरण किया गया।