आचार्य भिक्षु नवयुग के सृजक थे

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बालोतरा।

आचार्य भिक्षु नवयुग के सृजक थे

साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन में आचार्य भिक्षु की मासिक पुण्यतिथि का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में आचार्य भिक्षु की अनुशासन शैली का चित्रण किया गया। साध्वीश्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु नवयुग के सृजक थे। उन्होंने आध्यात्मिक जगत में नवयुग का सृजन किया। शिथिलाचार की स्थिति को दूर कर शुद्ध धर्म का प्रकाश दिया। उनका उद्देश्य कोई नया पंथ चलाना नहीं था, वे निरभिमानी, निस्पृह संत थे। वे शुद्ध साधुत्व के संपोषक थे। वे चाहते थे कि दुनिया में शुद्ध धर्म का प्रकाश फैले, इसलिए उन्होंने धार्मिक जगत में धर्मक्रान्ति की। यह धर्मक्रान्ति तेरापंथ के रूप में प्रतिष्ठित हुई। आचार्य भिक्षु ने जो बीज बोया, वह विस्तार लेने लगा, तेरापंथ बढ़ने लगा। तब आचार्य भिक्षु ने संघ की सुदृढ़ता के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया और संघ व्यवस्था को स्थायी बनाने के लिए अनुशासन के महत्व को स्पष्ट किया। उनका अनुशासन उस युग के अनुरूप था। उन्हें अनुशासन में ढील सहज नहीं थी। संघ छोटा होने पर भी वे गलती को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे। गलती करने वालों पर कठोर अनुशासन लागू करते थे। यह उनका बड़ा योगदान है।
डॉ. साध्वी सुधाप्रभा जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु अनुशासन के व्याख्याता एवं सूत्रधार थे। उनका अनुशासन वज्र से भी कठोर और फूल से भी अधिक कोमल था। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने विचार रखे एवं साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने मंच संचालन किया। राहुल संकलेचा ने मंगल संगान किया। साध्वी अणिमाश्रीजी ने आचार्यप्रवर द्वारा रचित गीत का सामूहिक संगान कराया। सभा मंत्री प्रकाश बैद मूथा ने आगामी गुरु दर्शन यात्रा की जानकारी दी। इस अवसर पर सामूहिक आयंबिल अनुष्ठान हुआ जिसमें अनेक श्रावकों ने उपवास व आयंबिल कर श्रद्धा अर्पित की।