
रचनाएं
मेवाड़ धरा की मीरा
मेवाड़ धरा की मीरा, गण में चमकी बन हीरा,
बन धीर वीर गंभीरा, पाया भवजल से तीरा।
बीदामाजी ! का जीवन था उज्ज्वल,
दिल दरिया था निश्छल।।
1. हुज्जा माँ की सुता लाडली चावत कुल कली प्यारी,
वृद्धिचंदजी तात की तनया खिलती केसर क्यारी।
दक कुल की बहु संस्कारी, पींपली ग्राम मनहारी।
तुलसी गुरु कर से दीक्षा, खिल गई जीवन फुलवारी।।
2. श्रम की नज़ीर, पुरुषार्थी, बनी सेवार्थी,
परमार्थी स्वावलंबी जीवन जीया ऋजुमना आत्मार्थी।
गुरु आज्ञा दिल की धड़कन, आज्ञा में बिताया जीवन,
समता का दीप जलाया, थी साधना विलक्षण।
3. सुदीर्घजीवी ! शासनश्री ! गुरुमुख से ख़िताब पाया,
संयम मुक्ता माला का स्वर्णिम इतिहास रचाया।
उज्ज्वलरेखा जी सतियों ने सेवा की सुखदायी,
संयम पथ दीपशिखा को गुरुदृष्टि मिली सवाई।।
लय - सूरज कब दूर गगन से