
रचनाएं
जागी हद पुण्याई
जागी हद पुण्याई,
सति बिदामां भैक्षव गण री, सचमुच शान बढ़ाई।।
उम्र एक सौ सात वर्ष, ओ कीर्तिमान शासन में।
सुदीर्घ जीवी संबोधन भी, महाश्रमण रै युग में।
चौविहार अनशन कर अन्तिम, नैया पार लगाई।।
चौरासी वर्षां लग लम्बो, संयम जीवन पाल्यो।
ज्ञान ध्यान स्वाध्याय और तप जप स्यूं सार निकाल्यो।
सेवा कर कर, करी निर्जरा, आत्मा नै चमकाई।।
समता सहज सरलता पल-पल, शान्त सुधारस पियो।
सक्रिय स्वस्थ स्वावलम्बी थे, प्रेरक जीवन जीयो।
वीरांगना मेवाड़ भूम री, वीर वृति दिखलाई।।
राजाणै री पुण्यधरा, तुलसी कर दीक्षा पाई।
महाप्रज्ञ गुरू महाश्रमण, महाश्रमणी महर सवाई।
धन्य धरा कालू में अन्तिम वास हुयो सुखदायी।।
साध्वी उज्जवलरेखा जी, सहयोगी सतियां सारा।
लाभ लियो दरसण सेवा रो, आया भक्त हजारां।
संघप्रभा विरला ही पावै, मृत्यु इसी वरदायी।।
लय - संयम मय जीवन हो