साध्वी कमलप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
गण री घणी बढ़ाई आब साध्वी कमलप्रभा।
गण में छोड़ी अपणी छाप साध्वी कमलप्रभा॥
कुशल तान सुंदर माताजी है आंगन मे जनम लियो।
बैद कुल पर ऊँचो कलश चढ़ायो कमलप्रभा॥
दस भायां री बहन लाडली अरु गुलाब री सोदरी।
चंदेरी री उजली उजली आभा कमलप्रभा॥
मेदपाट रे उदयापुर में संयमलच्छी वरण करी।
तुलसी प्रभु रीं कृपा सवाई पाई कमलप्रभा॥
अमल कमल सम हँसता खिलता संयम में हा रंगराता।
देख्यो तीन गणाधिप रो बरतारो कमलप्रभा॥
कर्मठ, चतुर, सहज फुर्तीला आलस रो कोई नाम नहीं।
चतराई री सागी बनागी हाँ कमलप्रभा॥
धोरां री धरती पर थे तो इंद्रधनुषी रंगभर्या।
मारवाड़ी स्यूं मेवाड़ी बणग्या कमलप्रभा॥
सहगामी सतियाँ ने हरदम सुंदर शिक्षा देवतां।
गण री रीत भांल पर चालता हां कमलप्रभा॥
तन स्यूं हल्का मन स्यूं हल्का कर्मा स्यूं हल्कापणो।
आखिर दिखलाई दृढ़ताई भारी कमलप्रभा॥
गुरुदर्शन री हूंस घणी ले दोङ्या आया मेवाड़ा।
फिर क्यूं कीन्हीं जल्दी जाणै री थे कमलप्रभा॥
मुगती रै मारग पर बढ़ती चढ़ती रहवै आतमा।
आध्यात्मिक ऊँचाई वरण करीज्यो कमलप्रभा॥
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
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