‘मातृ देवो भव - पितृ देवो भव’ कार्यक्रम आयोजित

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बालोतरा।

‘मातृ देवो भव - पितृ देवो भव’ कार्यक्रम आयोजित

साध्वी अणिमाश्रीजी के सान्निध्य में अमृत सभागार के सुरम्य परिसर में विशाल जनमेदिनी की उपस्थिति में ‘मातृ देवो भव – पितृ देवो भव’ का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ। राजेश बाफना ने बताया, “माँ ही मंदिर, माँ ही पूजा, पिता से बढ़कर कौन है दूजा” इस विषय पर मार्मिक उद्बोधन देते हुए साध्वी अणिमाश्रीजी ने कहा – जिसकी वाणी में सत्य, आँख में शिव और हाथों में सुन्दरता है, सत्य, शिव, सुन्दर की जीवन्त मूरत है माँ। सरवर, तरवर और संत की तरह बच्चों पर अपना हर सुख लुटा देती है माँ। पृथ्वी की तरह सहनशील है माँ। उसकी ममता सागर की तरह अथाह है। ‘माँ’ शब्द बीज की तरह छोटा-सा है, मगर उसका कर्तृत्व बरगद की तरह विशाल है। माँ अपने आप में एक सम्पूर्ण शास्त्र है।
माँ के ममत्व की एक बूंद के आगे अमृत का क्षीर समंदर भी बौना लगता है। चाहे बेटा सारी पृथ्वी का सम्राट ही क्यों न बन जाए, पर माँ के उपकारों का कर्ज नहीं चुका सकता। उस कर्ज से यत्किंचित हल्का होने के लिए माँ के धर्म-ध्यान में सहयोगी बनो, साधु-संतों की सेवा में सहयोग करो, और आध्यात्मिक परिवेश में रहने का अवसर दो। लायक संतान बनकर माँ-बाप के उपकारों को कभी मत भूलना।
डॉ. साध्वी सुधाप्रभाजी ने पिता की गरिमा को व्याख्यायित करते हुए कहा – जीवन रूपी नाटक के दो महत्वपूर्ण पात्र हैं – माता और पिता। पिता उस शख्स का नाम है जिसे न दिन दिखाई देता है, न रात; उसे तो सिर्फ परिवार के हालात दिखाई देते हैं। पिता नीम के पेड़ की तरह होता है, जिसके पत्ते भले ही कड़वे हों, पर छाया हमेशा ठंडी ही देता है। अपनी तकदीर को संवारने के लिए खुदा रूपी माँ-बाप की खिदमत करो। माँ-बाप से बढ़कर कोई नहीं। माँ प्रेम, स्नेह और संस्कार देने वाली, और पिता हिम्मत, शक्ति, मान-सम्मान दिलाने वाले धरोहर होते हैं। साध्वी कर्णिकाश्रीजी ने माँ की ममता को उजागर करने वाली भावपूर्ण कविता प्रस्तुत की। साध्वी समत्वयशाजी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया।