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भक्ति पूर्वक स्मरण चेतना को करता है प्रभावित
तेरापंथ भवन में विराजित 'शासनश्री' साध्वी मंजूप्रभा जी एवं 'शासनश्री' साध्वी कुंथुश्री जी के सान्निध्य में लोगस्स का मंगलकारी अनुष्ठान सानंद संपन्न हुआ। साध्वी मंजूप्रभा जी ने श्रावक-श्राविकाओं को धर्माराधना में जागरूक रहने की प्रेरणा दी। साध्वी कुंथुश्रीजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि स्तोत्र, स्तुति, स्तवन – इन सब का मूल रूप है भक्ति। लोगस्स का पाठ देव, गुरु, धर्म के प्रति एक अनुराग का प्रयोग है। इसमें 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई है। लोगस्स की स्तुति छोटी होने पर भी भावपूर्ण और महत्वपूर्ण है। लोगस्स आज के युग का कल्पवृक्ष है, चिंतामणि है।
यह आत्मशुद्धि के साथ-साथ अन्य विघ्नों को दूर करता है। भक्ति पूर्वक किया गया स्मरण चेतना के कण-कण को प्रभावित करता है। जब भक्ति तन्मयता, एकाग्रता और तल्लीनता से की जाए, तो वह कर्म श्रृंखला को तोड़ने का माध्यम बनती है। साध्वी श्री ने लोगस्स के कई छोटे-छोटे प्रयोग बताए। साध्वी गुरुयशा जी, साध्वी सुमंगलाश्रीजी, साध्वी सुलभयशा जी, साध्वी जयंतप्रभा जी आदि सभी साध्वियों ने अनेक मंत्रों के साथ लोगस्स का विधिवत उच्चारण एवं प्रयोग करवाया।