
रचनाएं
एक संत पुरुष जन्मा है
नए दिनमान ने जग का नया श्रृंगार बदला है।
मिटाने तम धरा का एक संत पुरुष जन्मा है ।।
अगर संकल्प हो दृढ़ तो नहीं असंभव कुछ भी।
प्रभात हो जागृति का तो करें सुराख नभ में भी ।।
गुरु का मान बढ़ाया पर किया गुरुर नहीं कभी।
पर सिद्धांतों के चलते वह वीर झुका नहीं कभी ।।
शिष्यों की बात मान कर लिया निर्णय जो बड़ा।
तभी तेरापंथ की नींव का आज वृक्ष है खड़ा ।।
लंबी यात्रा को जीया जीवन में नित नया निखार।
किया संघ में नया श्रद्धा आचार और विचार ।।
पंचम आरे में चौथे आरे का सा जीवन।
जीवन का समझा सार तभी आत्मा बनी महान ।।
महावीर की तरह भीखण बढ़ चले संयम पथ पर।
वीर की तरह कर्तव्य निभा रोशन हुए गृहस्थ डगर पर ।।
महान गण के निर्माता प्रभु हम सबके भाग्य विधाता।
करुं शत-शत प्रणाम मिटे सकल मेरे व्यवधान ।।
लाखों करोड़ों वर्षों तक अमर रहे स्वामी जी का नाम।
जैसे अरबों तारों में चमके चंद्र समान ।।