भिक्खु स्याम को शत-शत वंदन

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साध्वी मनीषाप्रभा

भिक्खु स्याम को शत-शत वंदन

त्रिशताब्दी पावन अवसर मिला महाश्रमण का शासन।
पैौरुष के अप्रतिम पुजारी भिक्खु स्याम को शत-शत वंदन।।
जिनकी आदि मध्य अंत में थी आत्मा की गुंजन,
जिनके संहनन के अणु-अणु में शौर्य पराक्रम का स्पंदन।
बुद्धि की प्रखरता और अनुभव की सघनता का स्पर्शन,
हर अस्थि मज्जा-मज्जा में महावीर वाणी का दिग्दर्शन।
तेरी औत्पत्ति बुद्धि को देख जन-जन का मन चकराता,
तेरी ओजस्वी वाणी को सुन जन-जन का मन हरषाता।
विरोधों के तूफानों में संत भीखण हरदम मुस्कुराता,
तेरे तेजोमय नयनों में बरस रहा अमृत का वर्षण।
तेरापंथ की पुण्याई से मिले आज महाश्रमण गणताज,
एक आचार, एक विचार, एक समाचारी, पर है हमको नाज।
शुद्ध साध्वाचार पाने के लिए उठाई आत्मा की आवाज,
युगदृष्टा युगस्रष्टा तुम मेटो जन-जन का हर क्रन्दन।