नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं

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साध्वी समत्वप्रभा

नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं

भिक्षु के गुण गाऊं मैं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।
भिक्षुमय बन जाऊं मैं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।।
दीपां मां के लाल दुलारे, जन-जन की आंखों के तारे।
अंतरमन से ध्याऊं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।।
भिक्षु नाम है सबल सहारा, घोर अमां में करता उजारा।
चिन्मय दीप जलाऊं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।।
भिक्षु बाबा भक्त पुकारे, तुम बिन तड़फे नयनां हमारे।
भिक्षु रटन लगाऊं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।।
भैक्षवगण की सुखद शरण में, शांतिदूत महाश्रमण चरण में।
आनंद-आनंद पाऊं, नित उठ भिक्षु के गुण गाऊं।।
लय - प्रीत लगी मत तोड़ो