रचनाएं
गण की अनुपम ख्यात
भैक्षव शासन में हुई, दीक्षित सती अनेक।
सुदीर्घजीवी है बनीं, सती बिदामा एक।।
गुरु तुलसी मुख कमल से, दीक्षा की स्वीकार।
महाप्रज्ञ महाश्रमण की, पाई कृपा अपार।।
सावन सुदी एकम दिवस, विधिवत सायंकाल।
संथारा स्वीकार कर, सतिवर हुई निहाल।।
उज्जवलरेखा आदि ने, सेवा की दिन रात।
सकल विश्व में है बनी, गण की अनुपम ख्यात।।
जीवन में कालू गए, हम भी पहली बार।
साध्वी श्री को देखकर, रुं-रुं हर्ष अपार।।
सरल स्वभावी आत्मरत, विनय भक्ति भंडार।
जिन से मिलकर हो गया, चिर सपना साकार।।
चढ़ते बढ़ते ही रहे, अब सतिवर परिणाम।
यही भावना ह्रदय की, सफल करो निज काम।।