गुरुवाणी/ केन्द्र
आज्ञा में हो पुरुषार्थ का प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण
नवरात्र के संदर्भ में चल रहे आध्यात्मिक अनुष्ठान का उपक्रम संपन्न कर परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दो शब्द हैं – एक है आज्ञा और दूसरा है अनाज्ञा। शास्त्रों का उपदेश, ज्ञानियों की वाणी ही आज्ञा है। अपनी उच्छृंखलता से कोई कार्य करना अर्थात् अनुपदेश ही अनाज्ञा का कार्य हो जाता है। जो मुनि दीक्षा ले लेते हैं, वे कभी अनाज्ञा में उद्यमी और आज्ञा में अनुद्यमी हो जाते हैं। अर्थात् साधु शास्त्रों की और गुरु की आज्ञा में नहीं चलता, ऐसी स्थिति हो सकती है, परन्तु शास्त्र में कहा गया है कि यह बात मन में भी नहीं आनी चाहिए कि मैं अनाज्ञा में उद्यम करूं और आज्ञा में अनुद्यम करूं।
विद्यार्थी, संगठन के कार्यकर्ता या परिवार के सदस्य जब एक आज्ञा और अनुशासन में चलते हैं तो अच्छा कार्य कर पाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अनुशासन में नहीं रहते, सन्मार्ग पर नहीं चलते और भौतिकता में रुचि लेते हैं। विद्यालय का विद्यार्थी यदि शिक्षक के अनुशासन में चलकर अध्ययनशील बनता है तो वह आगे बढ़ता है, जबकि अनुशासनहीन विद्यार्थी प्रगति से वंचित रह जाते हैं। अतः धर्म, राजनीति या समाज – किसी भी क्षेत्र में अनुशासन अनिवार्य है। आदमी के जीवन में स्वयं का अनुशासन होना चाहिए। अणुव्रत का घोष है – निज पर शासन, फिर अनुशासन। दूसरों पर वही व्यक्ति शासन कर सकता है जो स्वयं अनुशासित होता है। वाणी पर, आचरण पर अनुशासन आवश्यक है। शास्त्र और गुरु की आज्ञा के अनुरूप संदेश-निर्देशों का पालन करते हुए अनुशासन में रहना और अनुशासन के प्रति जागरूक बने रहना चाहिए। जिसमें आज्ञा न हो उसमें पुरुषार्थ नहीं करना चाहिए।
सेना, चिकित्सा, वकालत आदि क्षेत्रों की सफलता भी प्रशिक्षण पर निर्भर होती है। जैसे यदि प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षकों की सही ट्रेनिंग हो जाए तो वे उत्तम प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं। ठीक उसी प्रकार किसी भी क्षेत्र में सम्यक् पुरुषार्थ आवश्यक है। पुरुषार्थ का फल तत्काल न भी मिले, फिर भी हमें सत्पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। व्यक्ति को हमेशा आज्ञा में ही पुरुषार्थ करना चाहिए और अनाज्ञा में पुरुषार्थ करने से बचना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरांत पूज्य गुरुदेव की सन्निधि में राज्यसभा सांसद लहर सिंह सिरोया उपस्थित हुए और उन्होंने अपनी श्रद्धासिक्त भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें आशीर्वचन प्रदान किया।