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223वाँ आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
डॉ. मुनि पुलकित कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन गांधीनगर में 223वां आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु सत्यखोजी और अंतर्मुखी साधक थे। उन्होंने भगवान महावीर की आगम वाणी को अपनी धर्म क्रांति का आधार बनाया था। उनके मन में वीतराग वाणी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। आचार्य भिक्षु ने तेजस्वी जीवन जीते हुए विक्रम संवत 1860 भाद्रपद शुक्ला तेरस को सिरियारी, राजस्थान में सात प्रहर का अनशन पूरा किया। आचार्य भिक्षु के समर्पण भाव को व्याख्यायित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि आचार्य भिक्षु की धर्म क्रांति का प्रसिद्ध वाक्य था – 'हे प्रभो! यह तेरापंथ।' अर्थात इस पंथ में मेरा कुछ भी नहीं है, सब कुछ आपका ही बताया हुआ सत्य मार्ग है, हम तो केवल इस पथ पर चलने वाले पथिक मात्र हैं। यह आचार्य भिक्षु के अहंकार मुक्ति का उत्कृष्ट भाव था। मुनि आदित्य कुमार ने भिक्षु स्तुति प्रस्तुत की। मुनिश्री के महामंत्र उच्चारण से कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ। तेरापंथ सभा अध्यक्ष पारसमल भंसाली ने स्वागत भाषण दिया। उपासक विनोद कोठारी, बहादुर सेठिया, सिंधनूर ज्ञानशाला प्रशिक्षिका कीर्ति नाहर तथा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल से वीणा बैद ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन मंत्री विनोद छाजेड़ ने किया। तेयुप गांधीनगर द्वारा 24 घंटे का ओम भिक्षु जय भिक्षु अखंड जाप का आयोजन किया गया।