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223वाँ आचार्य श्री भिक्षु चरमोत्सव के उपलक्ष्य में विविध आयोजन
आचार्य भिक्षु का 223वां चरमोत्सव दिवस तेरापंथ भवन डी वी कॉलोनी, सिकंदराबाद में साध्वी डॉ. गवेषणाश्री जी के सान्निध्य में मनाया गया। साध्वीश्री ने कहा कि आचार्य श्री भिक्षु उस व्यक्तित्व का नाम है, जिन्होंने तेरापंथ संघ के लिए मर्यादाएं लिखीं, संविधान बनाया, कष्टों को उपहार के रूप में स्वीकार किया। आचार्य भिक्षु ने अपने मौलिक चिंतन के आधार पर नए मूल्यों की स्थापना की। भिक्षु एक कुशल विधिवेत्ता के साथ-साथ सहज कवि एवं महान साहित्यकार भी थे। वे जब तक जिए, ज्योति बनकर जिए। उनके जीवन का हर पृष्ठ पुरुषार्थ की गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है। आचार्य भिक्षु का उदय एक नए आलोक की सृष्टि है। साध्वी मयंकप्रभाजी ने कहा - आचार्य भिक्षु ने अंतिम समय में शिक्षा देते हुए कहा कि मर्यादा, आज्ञा, संगठन, समर्पण और अनुशासन का पालन करना। जब तक इनका आचरण करोगे, जीवन अपने आप ज्योतिर्मय बन जाएगा। आचार्य भिक्षु उसका नाम है, जिसके आदि, अंत और मध्य में आत्मा ही है, जिसके अणु-अणु में पराक्रम ही पराक्रम है। साध्वी दक्षप्रभा जी ने सुमधुर गीतिका प्रस्तुत करते हुए आचार्य भिक्षु के जीवन-दर्शन को प्रकट किया। साध्वी मेरुप्रभा जी ने कुशलतापूर्वक कार्यक्रम का संचालन किया।