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स्वागत समारोह का आयोजन
स्वागत समारोह को संबोधित करते हुए शासनश्री साध्वी सुव्रतां जी ने कहा— 'अतिथि का स्वागत मनुहारों से होता है, चंद्रमा का स्वागत सितारों से होता है, परंतु संत ऐसी दिव्य हस्ती हैं जिनका स्वागत त्याग और तपस्या की बहारों से होता है। भारतीय संस्कृति में संत परंपरा को सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। कहा गया है— संत संसार की सर्वोत्तम निधि हैं, संस्कृति के प्राण हैं, चलते-फिरते तीर्थ हैं और धरती के कल्पवृक्ष हैं। उनके सान्निध्य से परंपरा, इतिहास और दर्शन का सजीव ज्ञान प्राप्त होता है। उनके संपर्क में आकर अज्ञानी ज्ञानी बनता है, पापी धर्मात्मा में परिवर्तित हो जाता है, और सुप्त चेतना जागृत हो उठती है। भगवान की वाणी से चंडकोशिया शांत हुआ, प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करने वाला अर्जुन माली संत बन गया।'
'शासनश्री 'साध्वी सुमनप्रभा जी ने भी अपने प्रेरक विचार रखे। इस अवसर पर महासभा के उपाध्यक्ष संजय खटेड़, तेरापंथ सभा पीतमपुरा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत भुतोड़िया, मध्य दिल्ली महिला मंडल की अध्यक्षा कनक चौपड़ा, शालीमार बाग सभा की अध्यक्षा सज्जन बाई गिड़िया, सभा के पूर्व अध्यक्ष संजय सुराणा, युवक परिषद के उपाध्यक्ष सौरभ, अणुव्रत ट्रस्ट के सहमंत्री प्रवीण बैद, तथा कन्यामंडल की प्रतिनिधियों ने अपने भाव व्यक्त किए। संचालन सभा मंत्री प्रवीण गोलछा ने किया।