परम की ओर ले जाने वाले तत्वों की हो आराधना  : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 18 अक्टूबर, 2025

परम की ओर ले जाने वाले तत्वों की हो आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण

परम की ओर ले जाने वाले वीतराग पथ के महापथिक युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से अमृतदेशना प्रदान करते हुए कहा कि जो व्यक्ति सभी प्रकार की कामासक्ति छोड़ देता है और धर्म, वैराग्य तथा साधना के प्रति समर्पित हो जाता है, वही महामुनि कहलाता है। परम के प्रति समर्पण होने पर कोई शर्त नहीं होती। कठिनाई आए तो आए, पद-प्रतिष्ठा रहे तो रहे, और न रहे तो न रहे, परन्तु परम के प्रति समर्पण बना रहना चाहिए। आचार्यश्री ने समझाया कि कामासक्ति और विषयासक्ति छोड़ना आवश्यक है। शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श के प्रति अनासक्ति की भावना रखने वाला व्यक्ति ही महामुनि कहलाता है। संसार के सभी दुःख का मूल कारण आसक्ति है। इसलिए साधु का जीवन निर्लेप होना चाहिए और परम की प्राप्ति की ओर निरंतर गति करनी चाहिए। साधु को शास्त्रों का भी ज्ञाता होना चाहिए। बाह्य आसक्तियों से मुक्त, साधना में रस लेने वाला और शास्त्रों का ज्ञाता होने पर साधु का जीवन उत्तम बनता है।
साधु-साध्वियों और समणियों को परम के प्रति लगाव बनाए रखना चाहिए। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और साधना के माध्यम से परम प्राप्ति के साधनों में ध्यान देना आवश्यक है। साधु के मन में यह भावना होनी चाहिए कि कैसे वह परम की ओर ले जाने वाले तत्वों की आराधना कर सके। चातुर्मास के बाद विहार करना भी साधु चर्या के नियमों का हिस्सा है। साधु-साध्वियों को अपने भीतर महामुनित्व स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।
इस अवसर पर आचार्यश्री महाश्रमणजी की पुस्तक ‘सुखी बनो’ का साध्वी राजुलप्रभाजी द्वारा कृत अंग्रेजी अनुवाद ‘बी हैप्पी’ जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा लोकार्पित की गई। आचार्य प्रवर की सन्निधि में मुनि मणिलालजी एवं मुनि अभयकुमारजी की स्मृति सभा आयोजित की गई। आचार्य प्रवर ने दोनों मुनियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया और चतुर्विध धर्मसंघ को उनके प्रति मध्यस्थ भाव व्यक्त करने हेतु चार लोगस्स का ध्यान करवाया। स्मृति सभा में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी और साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने दोनों आत्माओं के ऊर्ध्वारोहण की मंगलकामना की। मुनि रजनीशकुमारजी, मुनि अक्षयप्रकाशजी और समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने भी उनके प्रति मंगल भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।