वदना नन्दन तुलसी

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‘शासनश्री’ साध्वी पानकुमारी (प्रथम)

वदना नन्दन तुलसी

वदना नन्दन तुलसी जगत में कमाल करग्या।
युगद्रष्टा युगस्रष्टा म्हारै हिवड़े बसग्या ।।
1. रोम-रोम में रमग्या तुलसी, सांस-सांस में श्री तुलसी।
भरी नाम में दिव्य शक्ति, अन्तरतम रा पट खुलसी।
गुरुवर आशीर्वर स्यूं, अमृत रा मेघ झरग्या।।
2. दर्शन मिलता जिण नैणा ने, वै आँख्या तिरपत होती।
जिनवाणी सुणता जो प्राणी, बै पाता जीवन ज्योति।
तुलसी रो ले शरणो, लाखां भक्तजन तरग्या ।।
3. नया-नया आयामां स्यूं, गौरव बढ़ायो शासन रो।
मानव धर्म बतायो जद बै, अणुव्रत बणग्यो जन-जन रो।
अनुभव वाणी स्यूं, देव खजाना सारा भरग्या।।
4. क्रोध मान माया मिट ज्यावै, बा शक्ति देवो जग नै।
कलह-कदाग्रह दूर हुवै, बा भक्ति देवो कलियुग नै।
प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा स्यूं, सगलां रा कारज सरग्या।।
5. साधना सिद्धि बण ज्यावै, सिद्ध पुरुष कहता प्रतिपल।
जीणै री कला आवै, जद जीवन हो ज्यावै मंगल।
गणाधिपति उपाधि, आधि महाप्राण हरग्या ।।
तर्ज : नखरालो देवरियो