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आध्यात्मिक आरोहण की सशक्त सीढ़ी है मुनि दीक्षा
डॉ. मुनि पुलकित कुमारजी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में दीक्षार्थी हनुमानमल दूगड़ का संयम अनुमोदना तथा मंगल भावना कार्यक्रम तेरापंथ भवन, गांधीनगर में आयोजित किया गया। इस अवसर पर डॉ. मुनि पुलकित कुमारजी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में संयम और त्याग का विशेष महत्व है। मुनि दीक्षा ग्रहण करना अर्थात् संयम की सिद्धियों के द्वार में प्रवेश करना है। यह आध्यात्मिक आरोहण की सशक्त सीढ़ी है। जैन मुनि दीक्षा का अर्थ है पूर्ण पांच महाव्रत का जागरूकता पूर्वक आचरण करना। मुनिश्री ने आगे कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित होने का मतलब आत्म अनुशासन का विकास करना है।
दीक्षार्थी भाई हनुमानमल दूगड़ को मंगलकामना देते हुए मुनिश्री ने कहा कि इस उम्र में संयम की बातें करने वाले तो कई मिलते हैं, पर उस मार्ग पर चलने वाले विरले ही होते हैं। मैं आध्यात्मिक मंगलकामना करता हूं कि हनुमानमल दूगड़ आज 70 वर्ष की आयु में आत्मा के उपासक बनने की तैयारी कर रहे हैं और गुरु द्वारा इंगित मार्ग का पालन करते हुए आध्यात्मिक उन्नयन करें। मुनि आदित्य कुमार जी ने गीत के माध्यम से मंगलकामना प्रस्तुत की। मुनिश्री के मंगल महामंत्र उच्चारण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मंगलाचरण में दुग्गड़ परिवार की बहनों सीमा मालू, पूनम दुग्गड़, महक गिडिया और भारती डागा ने गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हिम्मत मांडोत ने दीक्षार्थी के लिए मंगलकामना व्यक्त की।
दीक्षार्थी का परिचय प्रतिक एवं प्रज्ञा मालू ने दिया। उपासकों और तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम टीम की ओर से अशोक सुराणा, महेंद्र दक, विनोद कोठारी, लक्ष्मीपत मालू, राहुल डागा और टीएफ अध्यक्ष पुष्पराज चोपड़ा ने गीतिका प्रस्तुत की। प्रज्ञा संगीत सुधा से रोहित कोठारी, वंश दुग्गड़, तेरापंथ महासभा से प्रकाश लोढ़ा, पुष्पा गन्ना और औरंगाबाद से डॉ. अनिल नाहर ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ सभा के मंत्री विनोद छाजेड़ ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए सभी संघीय संस्थाओं की ओर से दीक्षार्थी के प्रति मंगलकामना प्रकट की। तेरापंथ सभा और अन्य संस्थाओं के कार्यकर्ताओं ने दीक्षार्थी भाई का साहित्य और जैन पट्ट से अभिनंदन किया।