टूटते परिवार बिखरते परिवार’ वर्कशॉप का आयोजन
मदुरै
समझपूर्वक बनाया गया समूह ही समाज कहलाता है। जिसकी सबसे छोटी इकई परिवार हैं परिवार सामंजस्य की एक प्रयोगशाला है। परिवार की एकता के लिए आवश्यक है कि एक-दूसरों के प्रति स्नेह, समर्पण और सामंजस्य का भाव रहे। जिस परिवार में बड़ों के प्रति सम्मान और छोटों के प्रति वात्सल्य का व्यवहार होता है वह परिवार साक्षात स्वर्ग है। यह विचार मुनि अर्हत कुमार जी ने ‘टूटते परिवार बिखरते परिवार’ की वर्कशॉप पर व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि बौद्धिक युग में शिक्षा का जितना विकास हो रहा है, उतना ही मूल्यों का ह्रास भी हो रहा है। यह एक ज्वलंत समस्या है। हमें रिश्तों की कदर करनी चाहिए, जिससे रिश्तों की डोर कमजोर ना हो सके। आपस में स्नेह दीप जलता रहे, सामंजस्य के सूत्र में बंधा हुआ परिवार कभी टूट नहीं सकता। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें, जिससे परिवार में खुशहाली का वातावरण बना रहे। सहयोगी संत मुनि भरत कुमार जी, बाल संत जयदीप कुमार जी ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। लीला देवी भवन में कार्यक्रम का प्रारंभ मंगलाचरण सूरत से सीमा और नीलम परमार ने किया। सभा अध्यक्ष जयंतीलाल जीरावला ने सभी का स्वागत किया। कन्या मंडल ने प्रस्तुति दी। महिला मंडल
ने रोचक नाटक प्रस्तुत किया। आभार ज्ञापन स्थानकवासी समाज के अध्यक्ष नेमीचंद बाफना ने किया। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री धीरज दुगड़ ने किया और अतिथिगणों का सम्मान सभा के पदाधिकारियों ने किया।