शरीर और बुद्धि का उपयोग हो धार्मिक विकास के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गांधीनगर। 06 नवम्बर, 2025

शरीर और बुद्धि का उपयोग हो धार्मिक विकास के लिए : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रेक्षा विश्व भारती कोबा से लगभग 12 किमी का विहार कर विश्व मैत्री धाम पधारे। परिसर में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने फरमाया कि मनुष्य जन्म मिलना एक विशेष बात मानी जा सकती है। व्यक्ति चिंतनशील होता है, उसके पास मस्तिष्क होता है, बुद्धि होती है, पढ़ाई कर सकता है और अच्छा निर्णय ले सकता है। साथ ही धर्म की सर्वोच्च कोटि की साधना भी व्यक्ति कर सकता है।
साधना के लिए मनुष्य साधु बन जाते हैं। जैन साधु की साधना से पांच महाव्रत जुड़े हुए हैं। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूपी पंचामृत साधु में होते हैं। करोड़ों मनुष्य साधु बन जाते हैं और कितने-कितने मनुष्य केवलज्ञानी बनकर मोक्ष को भी प्राप्त हो जाते हैं। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ की साधु परंपरा में चातुर्मास के दौरान सामान्यतया एक स्थान पर प्रवास करना और चातुर्मास की संपन्नता पर मार्गशीर्ष कृष्णा एकम को प्रस्थान कर देना परंपरा है। शारीरिक अक्षमता न हो और कोई विशेष परिस्थिति न हो तो सामान्यतया मार्गशीर्ष कृष्णा एकम को विहार कर देना। संतों के विचरण से भी कल्याण का कार्य हो सकता है। संतों के उपदेश, प्रवचन, बातचीत व दर्शन से अनेक लोगों की चेतना में अध्यात्म का सूर्योदय हो सकता है और अध्यात्म का विकास हो सकता है। संतों की वाणी और उपदेशों पर लोगों की श्रद्धा भी होती है।
किसी को साधुता, संन्यास प्राप्त होना बहुत बड़ी बात होती है। सबको साधुता न भी मिले, परंतु जो सामान्य गृहस्थ हैं उनका जीवन भी अच्छा रहे, उनके जीवन में सद्गुणों का विकास हो। गृहस्थ विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनकर शरीर को अलंकृत करते हैं, परंतु आत्मा सद्गुणों से अलंकृत हो सकती है। जहां बाह्य आभूषण धारण किए जाते हैं, वहीं स्थानों पर सद्गुण रूपी भूषण धारण करने चाहिए। हाथ से दान देना हाथ का आभूषण होता है। गुरुचरणों में वंदन करना सिर का आभूषण है। झूठ नहीं बोलना वाणी का आभूषण है। प्रवचन सुनना, शास्त्रों की वाणी सुनना आदि कान के आभूषण हैं। भुजाओं का आभूषण किसी की सेवा करने में होता है। इन सद्गुण रूपी आभूषणों से व्यक्ति के जीवन का कल्याण हो सकता है। हम अपने जीवन में धार्मिक आभूषण धारण करने का प्रयास करें, तो उनसे हमारी आत्मा पवित्र बन सकती है। अतः यह मनुष्य जीवन हमें प्राप्त हुआ है, उसमें हम अधिक से अधिक धार्मिक आराधना करें और आत्मकल्याण की साधना करें।
मंगल प्रवचन के उपरांत आचार्य प्रवर के समक्ष आचार्यश्री तुलसी दीक्षा शताब्दी वर्ष के दौरान जाणुन्दा में होने वाले प्रवास से संबंधित बैनर का लोकार्पण जाणुन्दा निवासी मूलचंद नाहर आदि द्वारा किया गया। योगक्षेम प्रवास व्यवस्था समिति लाडनूं के अध्यक्ष प्रमोद बैद ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल, लाडनूं ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।