गुरुवाणी/ केन्द्र
छोटे-छोटे व्रत से आध्यात्मिक जीवन को करें बड़ा : आचार्यश्री महाश्रमण
अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत् वांग्मय के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि मनुष्य जीवन में धर्म की आराधना करना बहुत अच्छा कार्य होता है। अपने आचरणों में भी धर्म हो और जप, स्वाध्याय, सामायिक, त्याग, प्रत्याख्यान, विनय, भक्ति, इन रूपों में भी धर्म की आराधना हो। धर्म दो प्रकार का हो जाता है - पहला कालिक धर्म, दूसरा कालातीत धर्म। कालिक धर्म वह है जिसमें समय लगाना पड़े और कालातीत धर्म वह है जिसमें अलग से समय लगाने की जरूरत नहीं होती है। उदाहरणार्थ, सामायिक करना धर्म है, परंतु इसमें एक मुहूर्त का समय लगाएंगे तो सामायिक होगी। अष्ट प्रहरी पौषध करना है तो उसमें अष्ट प्रहर या कुछ अधिक समय लगाएंगे तब पौषध होगा। इसी प्रकार माला जपने, संतों के दर्शन करने या प्रवचन सुनने के लिए समय लगाना होगा। यह सारा धर्म कालिक धर्म हो गया जिसमें समय लगाना पड़ता है। दूसरा कालातीत धर्म में समय लगाने की विशेष अपेक्षा नहीं रहती, जैसे उपवास, पौरसी आदि अन्य कार्य करते हुए भी संपन्न हो जाते हैं, अतः ये एक प्रकार से कालातीत धर्म हैं। चोरी का त्याग, हिंसा का त्याग, आदि ऐसे धर्म हैं जिनमें अलग से समय नियोजित करने की आवश्यकता नहीं है। संकल्प कर लिया और उसके पालन के प्रति मनोबल मजबूत कर लिया तो आपके धर्म की अनुपालना हो रही है। दुकान में किसी ग्राहक को नहीं ठगना, कूट-माप तौल, आदि से बचने का प्रयास करना। ऑफिस आदि में ईमानदारी रखना, झूठ का त्याग कर लेना आदि कालातीत धर्म हो जाता है।
परमपूज्य आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन चलाया। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाते हैं जैसे नशा नहीं करना, प्रामाणिकता रखना, सांप्रदायिक सहिष्णुता रखना, आदि। इनके लिए कोई अलग से समय निकालने की जरूरत नहीं होती, अन्य कार्यों के साथ भी इनका पालन हो सकता है। ईमानदारी के लिए व्यक्ति झूठ नहीं बोले, चोरी नहीं करे, छल-कपट नहीं करे। यह त्रि-आयामी ईमानदारी है। ईमानदारी रखने वाले व्यक्ति के जीवन में परेशानियां भी आ सकती हैं परंतु ईमानदारी का रास्ता सीधा-सपाट है। अंत में विजय सत्य की ही होती है। ईमानदारी के लिए हिम्मत और निर्भीकता होनी चाहिए। शास्त्र कहा गया है कि झूठ बोलना सभी साधुओं के लिए निंदनीय है। ईमानदारी एक प्रशंसनीय गुण है। गृहस्थ जीवन में भी जितना संभव हो सके, झूठ बोलने आदि से बचकर धर्म के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन के पश्चात् मुनि अर्हम् कुमार जी ने अंग्रेजी भाषा में 'धर्म के महत्व' विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। आचार्यश्री ने मुनि अर्हम् कुमार जी को अगले 14 व 15 नवम्बर को अगले विषय पर अंग्रेजी भाषा में भाषण देने की प्रेरणा प्रदान करते हुए सात कल्याणक बख्शीस किए। तदुपरांत पूज्य गुरुदेव ने समणियों को भाषण के लिए विभिन्न विषय प्रदान किए।
चन्द्रप्रभलब्धि धाम के मुख्य ट्रस्टी जिग्नेश भाई मेहता ने अपने विचार व्यक्त किए। आचार्य प्रवर ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।