जीवन में धर्म है तो मंगल स्वतः है भीतर : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कोबा, गांधीनगर। 04 नवम्बर, 2025

जीवन में धर्म है तो मंगल स्वतः है भीतर : आचार्यश्री महाश्रमण

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि महातपस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि धर्म की अति संक्षेप और अति सुन्दर व्याख्या है कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। प्राणियों को मंगल अभीष्ट होता है। प्रवेश और प्रस्थान दोनों सफल हो इसके लिए अनेक लोग मुहूर्त देखते हैं। मंगल पाठ की भी परम्परा है। विदाई के समय मंगल भावना समारोह भी आयोजित होता है और उसमें कितने लोग अपने ढंग से अभिव्यक्ति देते हैं।
यदि हमारे जीवन में धर्म है तो मंगल हमारे भीतर है, हमारे साथ है। चातुर्मास में साधु-साध्वियां चार महीने अथवा जो भी कालावधि है उसके लिए सामान्यतया विधि विधान के अनुरूप बद्ध हो जाते हैं। एक निर्धारित क्षेत्र में प्रवास करते हैं। चातुर्मास के समय धर्माराधना योजना के अनुसार काफी व्यवस्थित हो सकती है। चातुर्मास में चारित्र आत्माएं और गृहस्थ लोग दोनों तप आराधना करते हैं। धर्म के तीन आयाम हो जाते हैं - अहिंसा, संयम और तप। ये तीनों धर्म हैं और तीनों मंगल हैं। चातुर्मास में प्रवचन आदि होते हैं, यह भी एक प्रकार का तप है। अपने श्रम की परवाह किए बिना उपदेश देना चाहिए, व्याख्यान देना चाहिए क्योंकि प्रवचन करने वाला स्वयं पर भी अनुग्रह करता है और दूसरों पर भी अनुग्रह करता है। प्रवचन के द्वारा किसी को प्रेरणा देने से व्यक्ति के भीतर संवेग आ सकता है, एक सफलता की उपलब्धि हो सकती है।
नवदीक्षित साधु-साध्वियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा कि चलते समय ईर्या समिति का पूर्ण ध्यान रखें और ट्रेफिक के प्रति हमारी पूर्ण जागरूकता रहे। सभी साधु-साध्वियां इस विषय में जागरूकता रखें। साधु जीवन में अच्छा प्रतिक्रमण होना चाहिए, प्रतिक्रमण को छोड़ना नहीं चाहिए। इसी प्रकार प्रतिलेखन का कार्य भी समय पर सजगता के साथ हो जाए। भाषा समिति में भी जागरूकता रहे। पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति की अच्छी आराधना हमारे लिए कल्याणकारिणी हो सकती है। इस प्रकार अहिंसा, संयम और तप धर्म है और साधु धर्म मूर्ति होना चाहिए। साधु की चेतना धर्ममय होनी चाहिए।
चातुर्मास सम्पन्नता की ओर है। चातुर्मास व्यवस्था समिति व अन्य लोगों को चातुर्मास प्रारंभ होने से पूर्व कितनी व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। अनेक कार्यकर्ताओं का श्रम नियोजित होता है। अनेक संस्थाएं अपने कार्य करती है। इस चातुर्मास का आयोजन काफी अच्छा प्रतीत हो रहा है और अहमदाबाद चातुर्मास व्यवस्था समिति द्वारा आयोजित यह चातुर्मास काफी अच्छे ढंग से सम्पन्नता के निकट है। अपने व्यक्तिगत कार्यों को छोड़कर चातुर्मास व्यवस्था में लगना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सेवा का कार्य होता है। अहमदाबाद साधु-साध्वियों की चिकित्सा का भी एक अच्छा केन्द्र बन गया है। यहां का श्रावक समाज इस संदर्भ में बहुत ही जागरूक है। अच्छे समर्पण भाव से इस ओर ध्यान देते हैं।
मंगल प्रवचन से पूर्व मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का प्रारंभ आचार्य प्रवर की सन्निधि में अहमदाबाद वासियों की ओर से मंगल भावना समारोह का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम अहमदाबाद ज्ञानशालाओं की प्रशिक्षिकाओं ने गीत के माध्यम से अपनी भावनाओं की प्रस्तुति दी। इसके पश्चात् अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी श्रद्धासिक्त भावनाएं प्रस्तुत की। प्रवास व्यवस्था समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नरेन्द्र पोरवाल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मंडल अहमदाबाद ने गीत के माध्यम से, उपासक श्रेणी की ओर से डालमचन्द नौलखा व अन्य उपासक श्रेणी के सदस्यों ने गीत के संगान के माध्यम से भावाभिव्यक्ति दी।
आचार्य प्रवर ने मंगल प्रवचन के पश्चात् चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी के क्रम को संपादित करते हुए चारित्रात्माओं को अनेक प्रेरणाएं प्रदान की। नवदीक्षित साध्वियां - साध्वी भावनाप्रभा जी, साध्वी मंथनप्रभाजी, साध्वी कल्याणप्रभाजी, साध्वी ऋतम्भराप्रभाजी, व साध्वी रहस्यप्रभाजी ने लेख पत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने पांचों साध्वियों को दो-दो कल्याणक बख्शीश किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
मुनि चौथमलजी द्वारा रचित कालू कौमूदी की हिन्दी व्याख्या समणी हिमप्रज्ञा जी द्वारा की गई, जिसकी दो पुस्तकों को आचार्यश्री के समक्ष जैन विश्व भारती के द्वारा लोकार्पित किया। आचार्य प्रवर ने मंगल प्रेरणा प्रदान की। साध्वी सरस्वतीजी ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। मंगल भावना के द्वितीय चरण में प्रवास व्यवस्था समिति की सहमंत्री लाड बाफना समेत अनेक श्रद्धालुओं ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद्-अहमदाबाद व तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-अहमदाबाद के सदस्यों ने पृथक-पृथक गीतों का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।