पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सम्यक् और यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

बलीचा, उदयपुर। 24 नवम्बर, 2025

पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सम्यक् और यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

वर्ष 2025 के अहमदाबाद चातुर्मास को संपन्न कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, शांति-दूत युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र के उदयपुर की नगर सीमा में मंगल प्रवेश किया। स्वागत जुलूस के साथ महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी उदयपुर के उपनगर बलीचा के प्रगति आश्रम में पधारे। आगम-आधारित अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि मोक्षमार्ग चतुरंगी बताया गया है—ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। चारित्र के पहले या चारित्र के साथ सम्यक्त्व की आवश्यकता होती है। यदि व्यक्ति को सम्यक् ज्ञान उपलब्ध हो जाए तो चारित्र का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है।
कोई भी कार्य हम करें, उस कार्य के विषय में यदि सम्यक् ज्ञान हो, तो वह कार्य सम्यक् रूप से संपन्न हो सकता है। अध्यात्म के क्षेत्र में भी पहले ज्ञान आवश्यक है, फिर आचरण। यदि हमने मोक्ष को अपनी मंज़िल चुना है, तो पहले हिंसा–अहिंसा, जीव–अजीव आदि तत्त्वों को समझना होगा, तभी संयम की साधना संभव है। अतः हमें सम्यक् ज्ञान और यथार्थ बोध प्राप्त हो जाए—क्योंकि अज्ञान एक प्रकार का कष्ट है, अभिशाप है, अंधकार है। अज्ञान सभी पापों से भी अधिक अशुभ है। अज्ञान का आवरण होने पर मनुष्य करणीय–अकरणीय का विवेक ही नहीं कर पाता। इसलिए आग्रह और पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सम्यक् और यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। यह भावना रहे कि सही दृष्टि और सही ज्ञान उपलब्ध हो। जब ज्ञान के साथ आचार का समन्वय हो जाए, तब कार्य की पूर्णता संभव होती है। सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र—दोनों हों, तो मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। ज्ञान और आचार ही मोक्ष का मार्ग हैं।
जैन धर्म में अनेक ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों के स्वाध्याय से पुनर्जन्म, स्वर्ग–नरक, मोक्ष, परमाणु–पुद्गल, छह द्रव्यों आदि की जानकारी प्राप्त होती है। आगमों के अध्ययन से अनेक कथाएँ, प्रसंग और उदाहरण मिलते हैं, जो प्रेरणादायी भी होते हैं और मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। अतः व्यक्ति को उपलब्ध समय में ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान का कोई पार नहीं है और समय सीमित है—ऐसी स्थिति में सारभूत ज्ञान को ग्रहण करने का प्रयास आवश्यक है। ज्ञान के प्रति सम्मान का भाव हो, तो व्यक्ति ज्ञान-प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है। इसके साथ ही परिश्रम भी आवश्यक है। स्वाध्याय करने से चित्त की निर्मलता और शुभयोग की स्थिति बन सकती है।
अतः ज्ञान-प्राप्ति के लिए निरंतर पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। आचार्य प्रवर ने कहा कि वर्तमान में आचार्य श्री भिक्षु का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष चल रहा है और आचार्य श्री तुलसी की दीक्षा के भी सौ वर्ष पूर्ण होने वाले हैं। इन संदर्भों में विभिन्न माध्यमों से ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। चलते-चलते उदयपुर आगमन हुआ है। यहां की जनता में धार्मिक चेतना बनी रहे, यही मंगलकामना है। पूज्य प्रवर के स्वागत में शांतिलाल सिंघवी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। उदयपुर तेरापंथ समाज ने स्वागत-गीत का संगान किया। जीवन सिंह पोखरणा तथा तेरापंथी सभा उदयपुर के अध्यक्ष कमल नाहटा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।