गुरुवाणी/ केन्द्र
एक छोटी-सी सलाह व्यक्ति को ला सकती है सही मार्ग पर : आचार्यश्री महाश्रमण
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत् वांग्मय के माध्यम से पावन देशना प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण सद्गुण हो सकता है—दया की भावना रखना, अनुकंपा रखना। जिस व्यक्ति में निर्मल दया की भावना होती है, वह अनेक पापों से बच सकता है। दूसरों को कष्ट देना पाप का कारण बन जाता है, और दूसरों के आध्यात्मिक कल्याण का प्रयास करना उत्तम धर्म है। जिनके हृदय में दया बसती है, वे दूसरों को कष्ट देने में संकोच करते हैं। अनावश्यक रूप से किसी को तकलीफ नहीं पहुंचनी चाहिए। तेरापंथ साहित्य में ‘अनुकंपा’ शब्द विशेष रूप से प्रतिष्ठित है। भीतर यह कंपन जागृत हो कि जो लोग अधर्म में जीवन बिता रहे हैं, उनका कल्याण कैसे हो? पाप के आचरण से आत्मा को बचाना—यही आध्यात्मिक दया है, यही अनुकंपा है। स्वयं को भी पाप से बचाना और दूसरों को समझाकर पाप-मुक्त करना भी दया का ही स्वरूप है। साधु का यह प्रयास होना चाहिए कि जो लोग पापपूर्ण जीवन जी रहे हैं, उन्हें किस प्रकार उपदेश, मार्गदर्शन और सद्वचन द्वारा धर्म की ओर मोड़ा जाए।
उपदेश और प्रवचन के माध्यम से अनेक व्यक्तियों का जीवन धर्म की ओर उन्मुख किया जा सकता है। कई बार एक छोटी-सी सलाह या उपदेश व्यक्ति को गलत दिशा से हटाकर सही मार्ग पर ले आने में समर्थ होता है और उसकी दृष्टि को सम्यक् बना सकता है। अतः हमारे जीवन में धार्मिकता अवश्य होनी चाहिए। विद्यार्थियों में नैतिकता, सद्भावना, अहिंसा और ईमानदारी जैसे संस्कार स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। ज्ञान और अच्छे संस्कार मिल जाएँ, तो मनुष्य का जीवन उत्कृष्ट बन सकता है। सभी के जीवन में शांति और समाधि बनी रहे और जीवन में जितना धर्म का पुरुषार्थ कर सकें, उतना करने का प्रयास करना चाहिए। विद्यालय के प्रधानाचार्य कृष्णकांत शर्मा ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। शिक्षिका शुभा धर्मावत ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति प्रस्तुत की। उपस्थित बच्चों को आचार्य प्रवर ने सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए तीनों संकल्प स्वीकार करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।