पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार करते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

टीडी। 22 नवम्बर, 2025

पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार करते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत् वांग्मय के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए कहा कि 'स्वयं सत्य का अन्वेषण करें और सब प्राणियों के प्रति मैत्री भाव रखें।' सत्य की खोज करने वाले लोग सत्य की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। वैज्ञानिक युग में अनुसंधान के आधार पर नई-नई उपलब्धियाँ और नया-नया ज्ञान प्राप्त हो सकता है। जहाँ शोध की दृष्टि होती है, वहाँ पूर्वाग्रह और दुराग्रह नहीं होना चाहिए। हर किसी की कही बात को बिना गहराई से परखे यदि व्यक्ति मान ले, तो वह सच्चाई से दूर हो सकता है। शोध का लक्ष्य हो और विधि–पूर्वक खोज की जाए तो अवश्य कुछ प्राप्त होता है।
अध्यात्म के क्षेत्र में साधना के माध्यम से सच्चाई की प्राप्ति संभव है। एक खोज इन्द्रियों के आधार पर होती है और कुछ ज्ञान भीतर से उत्पन्न होता है। वैज्ञानिक यंत्रों की सहायता से प्रयोग कर इन्द्रिय-आधारित खोज करता है, यह इन्द्रिय-जगत का तरीका है; परंतु कई बार इन्द्रियों की सहायता के बिना भी भीतर से ज्ञान प्रकट होता है। अध्यात्म के महर्षियों ने अतीन्द्रिय ज्ञान को प्राप्त किया है। जैन तत्त्वविद्या में इस अतीन्द्रिय ज्ञान को अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और केवलज्ञान कहा गया है। यदि सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाए, तो वह केवलज्ञान कहलाता है। यह अतीन्द्रिय ज्ञान इन्द्रियों की सहायता के बिना भीतर ही भीतर प्रकट होता है।
कभी-कभी व्यक्ति जाति-स्मृति ज्ञान के द्वारा अपने पूर्व भवों को जान लेता है। इसे पूर्णतः अतीन्द्रिय ज्ञान तो नहीं कहा जा सकता, फिर भी यह ज्ञान भी भीतर से ही प्रकट होता है। मनुष्य को अपने जीवन में पूर्व जन्म और पुनर्जन्म की धारणा को स्वीकार करते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए और पापात्मक आचरण से बचना चाहिए। यदि पुनर्जन्म है, तो उत्तम गति प्राप्त होगी, और यदि पुनर्जन्म न भी हो तो भी हमारा वर्तमान जीवन श्रेष्ठ और शांतिपूर्ण बन सकता है। धर्म के मार्ग पर चलने से आत्मा का कल्याण होता है और जीवन शांति से व्यतीत होता है। अतः मनुष्य को सभी के प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए और स्वयं सत्य का अन्वेषण करना चाहिए।
आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में दिवंगत साध्वी श्री विनयश्रीजी की स्मृति सभा का आयोजन हुआ। आचार्य प्रवर ने उनका संक्षिप्त जीवन–परिचय देते हुए उनकी आत्मा के ऊर्ध्वारोहण की मंगल–कामना की। आचार्य प्रवर के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। इसके पश्चात मुख्यमुनिश्री एवं साध्वीप्रमुखाश्री ने उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगल–कामना व्यक्त की। विद्यालय परिवार की ओर से सुनील सिंघवी ने श्रद्धाभिव्यक्ति दी, और पूज्य प्रवर ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।