गुरुवाणी/ केन्द्र
मेवाड़ का तेरापंथ से है गहरा संबंध : आचार्यश्री महाश्रमण
अपनी धवल सेना के साथ निरंतर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 15 किलोमीटर का विहार कर ऋषभदेव में स्थित केसरियाजी तीर्थस्थल में किकाभाई धर्मशाला में पधारे। आज आचार्यश्री का मेवाड़ स्तरीय स्वागत समारोह ऋषभदेव गांव में स्थित केसरियाजी तीर्थस्थल में आयोजित था। महामनस्वी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आर्हत् वांग्मय के माध्यम से अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। प्रश्न होता है कि कौनसा धर्म उत्कृष्ट मंगल है? कहा गया है कि अहिंसा धर्म है, संयम धर्म है और तप धर्म है। अहिंसा का पालन कोई भी करे—चाहे जैन हो, सनातनी हो, मुसलमान हो—किसी भी धर्म का हो, उसका भला होता है। नास्तिक व्यक्ति भी, मिथ्या-दृष्टि वाला व्यक्ति भी अहिंसा का पालन करेगा तो उसका भी कल्याण हो सकेगा। इस मार्ग में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है।
धर्मसंघ के नवम आचार्य, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन चलाया। अणुव्रत का सिद्धांत अत्यंत व्यापक है जिसमें अहिंसा और संयम दोनों का समावेश है। अणुव्रत को स्वीकार करने वाला कोई भी व्यक्ति—नास्तिक हो या आस्तिक—अच्छा इंसान बन सकता है। आचार्यश्री तुलसी की दीक्षा के सौ वर्ष पूर्ण होने वाले हैं, और तेरापंथ धर्मसंघ के आद्याचार्य आचार्य भिक्षु का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष भी वर्तमान में चल रहा है। इसी वर्ष चातुर्मास संपन्न कर हम गुजरात से प्रस्थान कर आज ऋषभदेव, केसरियाजी क्षेत्र में पहुंच गए हैं। यह राजस्थान–मेवाड़ की पावन धरा है। मेवाड़ का तेरापंथ से गहरा संबंध है—तेरापंथ की मानो यह जन्मस्थली है। अंधेरी ओरी, केलवा—ये सभी स्थान आचार्य भिक्षु से जुड़े हुए हैं। आज इस पावन मेवाड़ की धरा पर पधारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
सभी में सद्भावना रहे। व्यक्ति के जीवन में ईमानदारी हो। हर कार्य में ईमानदारी रखने का प्रयास होना चाहिए। साथ ही नशीले पदार्थों से बचने का अभ्यास हो। व्यक्ति के जीवन में जितना धर्म होगा, वह मंगल का कारण बनेगा। आचार्यश्री महाप्रज्ञ प्रेक्षाध्यान करवाते थे जिसमें अपने आप को देखने की बात है—मैं कौन हूं? मेरे भीतर क्या है? आत्मा क्या है? इस प्रकार अपने आप को गहराई से देखना प्रेक्षा ध्यान का मूल तत्त्व है। यह स्थान भगवान ऋषभदेव से संबंधित है। भगवान ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर हुए। उनका व्यक्तित्व अत्यंत व्यापक था—वे केवल जैन धर्म तक सीमित नहीं थे। उन्होंने जनता को अनेक शिक्षाएँ प्रदान कीं और प्रथम तीर्थंकर के रूप में प्रतिष्ठित हुए। ‘भक्तामर स्तोत्र’ भगवान ऋषभदेव की स्तुति है। इस क्षेत्र में लगभग 42 वर्षों बाद आगमन हुआ है। मेवाड़ के अन्य क्षेत्रों—उदयपुर आदि—की भी यात्रा होगी। जितना संभव हो सके, इस अवसर का धार्मिक–आध्यात्मिक लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य प्रवर के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि अनेक लोग तीर्थयात्राएँ करते हैं। जैन धर्म में भी कई तीर्थस्थल हैं। आज यहां चलते-फिरते तीर्थ—आचार्यश्री महाश्रमणजी—पधारे हैं। जैन दर्शन में सबसे महत्त्वपूर्ण है सम्यक् दर्शन। जब दृष्टि निर्मल होती है तभी व्यक्ति ज्ञान और आत्म-विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। आचार्यश्री के स्वागत में मेवाड़ कॉन्फ़्रेंस के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत, यात्रा संयोजक पंकज ओस्तवाल, समारोह संयोजक एवं भीलवाड़ा के उद्योगपति प्रवीण ओस्तवाल ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति व्यक्त की।राजस्थान सरकार के सहकारिता मंत्री गौतम दक ने भी मेवाड़ में आचार्यश्री की अभिवंदना करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति दी और मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। मेवाड़ तेरापंथ महिला मंडल ने स्वागत-गीत का संगान किया तथा मेवाड़ कॉन्फ़्रेंस के सदस्यों ने भी गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।