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बहुश्रुत की पर्युपासना से संभव है आत्म कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर शीशोद गांव में स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्य प्रवर ने फरमाया कि व्यक्ति के जीवन में ज्ञान का महत्त्व है। ज्ञान के बाद यदि व्यक्ति त्याग-पथ पर आ जाए और श्रमण धर्म को स्वीकार कर ले, तो वह अत्यंत महान बात हो जाती है। श्रमण धर्म की जानकारी—उसके नियम, लाभ आदि—यदि समझने हों, तो बहुश्रुत की पर्युपासना करनी चाहिए। श्रमण धर्म का मार्ग अत्यंत पुनीत और कल्याणकारी है। यह इहलोक-हित, परलोक-हित एवं सुगति की प्राप्ति कराने वाला पथ है। इस मार्ग और आत्म-कल्याण से संबंधित बातों को जानने हेतु बहुश्रुत का समीप जाना चाहिए, क्योंकि योग्य ज्ञानी से प्रश्न करने पर ही उचित और संपूर्ण उत्तर प्राप्त हो सकता है। जैसे स्वास्थ्य और दवाइयों के संदर्भ में सही जानकारी डॉक्टर ही दे सकता है—और डॉक्टरों में भी विभिन्न रोगों के विशेषज्ञ अलग-अलग होते हैं—उसी प्रकार धर्म के बारे में जानना हो तो साधु से पूछना चाहिए। साधुओं में भी जो बहुश्रुत हों, ज्ञानी हों, प्रबुद्ध हों, मति और धृति से संपन्न हों—ऐसे साधुओं से पूछने पर श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है। अतः बहुश्रुत का महत्त्व इसलिए है कि अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ केवल उन्हीं से प्राप्त हो सकती हैं।
प्राचीन काल में चौदह पूर्वी श्रुत केवली साधु होते थे। ऐसे ज्ञानियों का ज्ञान सामान्य साधुओं के पास नहीं होता। हमारे धर्मसंघ में भी अनेक मुनिवर श्रेष्ठ तत्त्ववेत्ता और गहन चर्चा करने वाले हुए हैं। आचार्य भिक्षु अत्यंत ज्ञानी थे और साथ ही ज्ञान को समझाने में उनका कौशल विलक्षण था। आचार्य भिक्षु का जन्म त्रिशताब्दी वर्ष वर्तमान में चल रहा है। उनकी बहुश्रुतता और गहन चिंतन-मनन का प्रमाण उनके साहित्य का अध्ययन करने पर मिलता है। इसी प्रकार जयाचार्य के ग्रंथ उनकी व्यापक बहुश्रुतता को प्रकट करते हैं। दोनों आचार्यों द्वारा रचित राजस्थानी भाषा की साहित्यिक संपदा अपने आप में एक महान निधि है। आचार्यश्री तुलसी का रचनात्मक कौशल भी अत्यंत विशिष्ठ था। यदि हम भी अपनी बहुश्रुतता को बढ़ाएँ, प्रतिपादन की शैली को परिष्कृत करें और साथ में साधना को भी प्रगाढ़ करें, तो हम भी अनेक व्यक्तियों को कल्याण की दिशा में प्रेरित करने में समर्थ हो सकते हैं। आचार्यश्री ने अंत में विद्यालय के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विद्यालय की प्रिंसिपल ज्योतिबाला ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।