आचार्य तुलसी के 25वें महाप्रयाण दिवस पर
एक ही नाम है - तुलसी
शासनश्री साध्वी सुमनश्री
बोलें-बोलें सुबह और शाम, एक ही नाम है तुलसी।
प्रभो! शक्ति के अक्षय-धाम, एक ही नाम है तुलसी॥
जब भी पुकारा इस धरती ने महामानव कोई आया।
जग के सूने चौराहों पर मंगल दीप जलाया।
नहीं लिया कभी आराम एक ही नाम है तुलसी॥
स्वारथ की इस दुनिया में जिसका न कोई सहारा।
मझधार में डोले नैय्या मिला न जिसको किनारा।
उनको लिया स्नेह से थाम, एक ही नाम है तुलसी॥
पावन मूरत मन में बसी है नहीं भूलेगा जमाना।
मंजिल से गुमराह बने जो राहें उनको दिखाना।
सिद्ध होंगे हमारे काम, एक ही नाम है तुलसी॥
गुरु नाम ही त्राण शरण है बाकी सब कुछ सपना।
तुलसी नाम ही सच्ची दुआ है तन्मय होकर जपना।
है ज्योति पुंज प्रणाम, एक ही नाम है तुलसी॥
करुणा की निर्झरणी बहाकर कितनों को सहलाया।
साहस की संजीवनी देकर बढ़ते ही रहना सिखाया।
थके चरणों के तुम विश्राम, एक ही नाम है तुलसी॥
लय : आ लौट के आ जा मेरे मीत---