प्रवृत्ति करने के तीन साधन-शरीर, वाणी और मन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

प्रवृत्ति करने के तीन साधन-शरीर, वाणी और मन : आचार्यश्री महाश्रमण

बिजौलिया, 28 नवंबर, 2021
राजस्थान की धरा को अहिंसा यात्रा के माध्यम से पावन बनाते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी 10 किलोमीटर का विहार कर बिजौलिया स्थित श्री दिगंबर जैन, पार्श्‍वनाथ अतिशय तीर्थ संग में पधारे। बिजौलिया पदार्पण पर गाँव के ठाकुर सहित सैकड़ों लोगों ने पूज्यप्रवर की अगवानी की। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे पास प्रवृत्ति करने के तीन साधन हैंशरीर, वाणी और मन। यों जीवन में प्राण-पर्याप्ति, श्‍वास भी है। कुल में दो ही तत्त्व हैंजड़ और चेतन। शरीर जड़ है ओर आत्मा चैतन्यमय है। शरीर से आदमी कई कार्य करता है। वाणी से आदमी बोलता है, विचार का आदान-प्रदान करने सक्षम साधन भाषा बनती है। मन के द्वारा आदमी स्मृति, कल्पना और चिंतन करता है। यंत्रों के माध्यम से शरीर के भीतर भी देखा जा सकता है। जो हमें दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर है। जैन सिद्धांत में दो शरीर और बताए गए हैंसूक्ष्म शरीर और सूक्ष्मतर शरीर। सूक्ष्म शरीर तेजस शरीर है और सूक्ष्मतर शरीर है, कार्मण शरीर। डॉक्टर स्थूल शरीर की जानकारी कर सकते हैं, पर कार्मण शरीर की जानकारी करना डॉक्टर के बस की बात नहीं है। कार्मण शरीर अध्यात्म का विषय होता है। मन भी अद‍ृश्य है। मन के विचारों को जानना भी मुश्किल है। वाणी तो ज्ञात हो जाती है। ‘भय चिंता, आलस-अमन, सुख-दु:ख, हेत-अहेत। गगनदीप के आचरण, नृप दीवान कह देत।’ मन के भाव चेहरे को देखकर कुछ समझ सकते हैं। जैन दर्शन में पाँच ज्ञान बताए गए हैं, उनमें एक ज्ञान है, मन:पर्यव ज्ञान। मन की स्थिति को जान लेना यह अतीन्द्रिय ज्ञान होता है। दुनिया में ज्यादा पाप मन वाला प्राणी करता है। नरक में भी मन वाला प्राणी जा सकता है। बिना मन वाला पहले नरक तक जा सकता है। ज्यादा धर्म भी बिना मन वाला प्राणी नहीं कर सकता। मनुष्य जितनी साधना तो दूसरे जीव कर ही नहीं सकते। मन एक ऐसा तत्त्व है, जो हमें ऊँचा भी ले जा सकता है और अधोगति में भी ले जा सकता है। मन सुमन हो तो वह ऊर्ध्वगति में ले जाने वाला हो सकता है। हम अपने मन को पावन रखने का प्रयास करें। सबके कल्याण की बात सोचें। यह एक प्रसंग से समझाया। दूसरों का बुरा सोचने वाला खुद का बुरा कर लेता है। बुरा मत देखो, यह एक प्रसंग से समझाया। दूसरों का बुरा सोचने वाला खुद का बुरा कर लेता है। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो और बुरा मत सोचो। आज हम जिस परिसर में आए हैं, वह भगवान पार्श्‍व से जुड़ा है। भगवान पार्श्‍व पुरुषादानीय थे। हम भी वीतराग बनने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर की अभिवंदना पार्श्‍वनाथ क्षेत्र से लाभचंद जैन, नरेंद्र बगड़ा, पूर्व विधायक विवेक धाकड़, ठाकुर सौभाग्य सिंह, बिजौलिया श्रीसंघ से यशवंत पुगलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। नंदिनी जैन ने प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।