साधु की संगति पाप को हरने वाली होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधु की संगति पाप को हरने वाली होती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गामच, 4 दिसंबर, 2021
परम पावन आज प्रात: दो दिवसीय शिक्षा नगरी कोटा का प्रवास संपन्‍न कर 16 किलोमीटर का विहार कर गामच गाँव में पधारे। चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में अनेक चीजें सुलभ हो सकती हैं, तो कुछ चीजें दुर्लभ भी बताई गई हैं। शास्त्र में बताया गया है कि चार अंग जो परम है, वो प्राणी के लिए दुर्लभ होते हैं। पहली दुर्लभ चीज हैमनुष्यत्व। मनुष्य जन्म दुर्लभ है। 84 लाख जीवयोनियाँ बताई गई हैं, उनमें जो ये मनुष्य की योनी हैं, वो दुर्लभ है। कितनी योनियों में जीव भ्रमण करता है। अनंत जीव तो ऐसे हैं, जो कभी मनुष्य बने ही नहीं। अव्यवहार गणि के सारे के सारे जीव आज तक वे मनुष्य बने ही नहीं है। कुछ जीवों को ही संज्ञी मनुष्य बनने का मौका मिलता है। मनुष्य जन्म मिल जाए तो दूसरी दुर्लभ चीज हैश्रुति-धर्म का श्रवण मिलना मुश्किल है। श्रुति भी त्यागी संतों के मुख से मिले तो और विशेष बात हो सकती है। आज के वैज्ञानिक संसाधनों ने श्रुति को सुलभ बना दिया है। फिर भी प्रमाद में आकर व्यक्‍ति सुनने का प्रयास नहीं करता है। मान लो श्रुति मिल भी जाए! सुनने के बाद श्रद्धा का होना भी मुश्किल है। श्रद्धा जाग भी जाए तो संयम में वीर्य-पुरुषार्थ करना भी मुश्किल है। वे व्यक्‍ति धन्य है, जो मानव जन्म जिनको प्राप्त है। धर्म का श्रवण करने का जिनको मौका मिलता है। सुनी हुई बातों पर श्रद्धा भी हो जाती है और फिर संयम में पुरुषार्थ भी करते हैं। साधुओं का गाँव में आना ये भी एक अच्छी बात है। साधुओं की संगति थोड़ी देर की भी लाभदायी बन सकती है। साधु की संगति पाप को हरने वाली होती है, यह एक प्रसंग से समझाया कि किए हुए कर्म का फल स्वयं को ही भोगना पड़ेगा। कोई साथ देने वाला नहीं है। सब माल खाने में साथ हैं, मार खाने में कोई साथ नहीं है। साधु तो हर कोई नहीं बन सकता पर आदमी बुरा काम करना तो छोड़ सकता है, हमें मानव जीवन मिला है, गार्हस्थ्य में भी सद्गृहस्थ का जीवन तो जी सकता है। संयम-सादगी का जीवन हो। सत्संगत मानव जीवन को सफल बनाने में अच्छा निमित्त बन सकता है। यह मानव जीवन पाकर हम धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करें, और पापों से बचने का प्रयास करें। आचार्यप्रवर ने समुपस्थित लोगों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर संकल्प स्वीकार करवाए।