जीवन में सद्भावना, मैत्री भाव रखें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में सद्भावना, मैत्री भाव रखें : आचार्यश्री महाश्रमण

सवाईमाधोपुर, 12 दिसंबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी अहिंसा यात्रा एवं धवल सेना के साथ सवाईमाधोपुर पधारे। सवाईमाधोपुर ऐसी पावन स्थली है कि यहाँ पर हमारे आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु ने दो चातुर्मास किए थे। यहाँ से अनेक भव्य आत्माएँ तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित हुई हैं। परम पावन ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि तुम समय को जानो। हमारे जीवन में समय का बहुत महत्त्व है। हमारे हर कार्य में समय होता है, तो कार्य हो सकता है। समय तो और प्राणियों को भी मिलता है, पर मानव जीवन में जो समय मिल रहा है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि 84 लाख योनियाँ बताई गई हैं, उसमें यह मानव का जीवन विशेष महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए हमें यह ध्यान देना चाहिए कि मैं इस मानव जीवन में उपलब्धमान समय का बढ़िया उपयोग करूँ।
चार प्रकार की आत्माएँ होती हैंपरमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। परमात्मा तो परम है, वे हमारे लिए अद‍ृश्य है। हम मनुष्यों में तीन प्रकार के आदमी हो सकते हैंमहात्मा, सदात्मा, दुरात्मा। साधु लोग हैं, वे तो महात्मा हैं, पर साधु हर कोई बन जाए यह तो असंभव या कठिन बात है। महात्मा के तो मन, वचन, काय में एकरूपता होती है या होनी चाहिए। मन में कुछ है, वाणी में कुछ है वह दुरात्मा है, जो छलकपट करता है।
साधु-महात्मा के दर्शन करने से ही पाप झड़ जाते हैं। साधु के तो दर्शन ही पुण्य हैं, क्योंकि साधु तो चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। साधुओं की संगति का भी बड़ा महत्त्व होता है। शुद्ध साधु की संगति मिलनी भी दुर्लभ है, धर्म कथा होना भी दुर्लभ है, वो हो तो उसका लाभ उठाना चाहिए। जितना समय मिले, लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। साधु में संयम है, त्याग है, इसलिए उसकी विशेषता है। साधु तो अध्यात्म-धर्म के मार्ग पर अग्रसर है। जो धर्म के मार्ग पर चलता है उसे तो देवता भी नमस्कार करते हैं। देवों का अपना महात्मय है। उनकी असातना न हो। तपस्वी साधु की सेवा में देव आ जाते हैं। जो गृहस्थ है, गृहस्वामी जीवन में भी अच्छा जीवन जीना चाहिए। गृहस्थों में भी कई-कई तो साधु जैसे होते हैं। गृहस्थ जीवन को सफल बनाने के लिए जीवन में ईमानदारी रहे। उसकी ओर से धोखा नहीं देना चाहिए। झूठ एवं चोरी से बचें। जीवन में सद्भावना, मैत्री भाव रखें। भिन्‍नता-मान्यता अलग हो सकते हैं, पर व्यवहार में मैत्री भाव रखना चाहिए। जीवन में संयम है, नशे से बचने का प्रयास करना चाहिए। नशे से चित्त भ्रांत हो सकता है, आदमी अपराध में जा सकता है और दुर्गति को प्राप्त कर सकता है। नशामुक्‍त जीवन हो। संयम-अहिंसा, सादगी जीवन में रहे। आदमी के विचार, आचार, संस्कार अच्छे हों। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आएँ। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान से जीवन में एकाग्रता-शांति एवं विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आ सकते हैं। ‘इंसान पहले इंसान, फिर हिंदु या मुसलमान’। अच्छा मानव बनने का व इसको सार्थक, सुफल बनाने का प्रयास करें। जीवन के बाद भी हमारी आत्मा रहती है। आगे का भी ध्यान दें, इसके लिए वर्तमान पर ध्यान देकर अच्छा बनाएँ। भविष्य को वर्तमान में देखना चाहिए। भविष्य पर ध्यान न देना बढ़िया बात नहीं है। आज सवाईमाधोपुर आए हैं। 40 वर्ष पहले आचार्य तुलसी ने यहाँ अक्षय तृतीया का महोत्सव किया था। उस समय मैं साथ नहीं आया था। यहाँ की जनता में भी अच्छी भावना, अच्छी धार्मिकता, अच्छे संस्कार रहें, यह मंगलकामना है। मुख्य नियोजिकाजी ने सवाईमाधोपुर में आचार्यों के प्रवास की जानकारी दी। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में महिला मंडल अध्यक्षा प्रीति जैन, महिला मंडल ने स्वागत गीत, सभा अध्यक्ष नरेंद्र जैन, कन्या मंडल की प्रस्तुति, तेयुप अध्यक्ष अखिल जैन, ज्ञानशाला, अणुव्रत समिति के मंत्री प्रदीप जैन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।