भीतर की शांति प्राप्त करने के लिए करें आध्यात्मिक आराधना : आचार्यश्री महाश्रमण
रवांजना, 11 दिसंबर, 2021
सद्भावना, नशामुक्ति और नैतिकता की मशाल जलाने की प्रेरणा प्रदान करने वाली अहिंसा यात्रा बूंदी जिले से सवाईमाधोपुर में प्रवेश हुई। आचार्यश्री महाश्रमण जी 14 किलोमीटर का विहार कर राजकीय माध्यमिक विद्यालय रवांजना पधारे। मुख्य प्रवचन में तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि धार्मिक साहित्य में मोक्ष की बात आती है। एक दार्शनिक विषय हैआत्मा और आत्मा से जुड़ा हुआ कर्म और फिर मोक्ष। आत्मा, कर्म और मोक्ष का संबंध हो जाता है। आत्मा या प्राणी जो भी क्रिया करता है, उससे कर्म का बंध होता है। फिर तपस्या-साधना के द्वारा बंधन को तोड़ दिया जाता है, तो आत्मा स्व-स्वरूप में अवस्थित हो जाती है। समस्त कर्मों से मुक्त बन जाती है, वह अवस्था मोक्ष होती है। जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति या मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ना होना चाहिए। आदमी जन्म लेता है, जीवन जीता है और एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। मानव जीवन में मोक्ष प्राप्ति का कार्य करना एक विशेष उपलब्धि का काम हो जाता है। आत्मा को शाश्वत कहा गया है। शरीर अशाश्वत होता है। इस अशाश्वत शरीर के द्वारा हम शाश्वत आत्मा के स्वरूप को पाने की चेष्टा करें, यह लाभ हो सकता है। मोक्ष एक अंतिम लक्ष्य है।
विद्या के लिए कहा गया है कि विद्या वह होती है, जो मुक्ति लाने वाली होती है। आदमी कषायों से मुक्ति पाने का प्रयास करे। विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आएँ तो विद्यार्थी अच्छा इंसान बन सकता है। अच्छा इंसान बनने से अच्छा समाज, राष्ट्र और विश्व बन सकता है। हमारे जीवन में बुराईयाँ न रहें, यह प्रयास हो। हम जैन धर्म से हैं। अहिंसा यात्रा करते-करते सवाईमाधोपुर के निकट आ गए हैं। हम इस यात्रा में तीन बातों का प्रसार कर रहे हैंसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। हमें बुद्धि मिली है, उसका अच्छा उपयोग हो। यह एक प्रसंग से समझाया कि सब नकली काम होता है, तो फिर असली काम कब होगा। भारत में कितना ज्ञान है। कितने ग्रंथ, संत और पंथ हैं। यह भारत की एक संपदा है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाएँ तो जीवन अच्छा हो सकता है। प्रेक्षाध्यान एवं जीवन विज्ञान भावात्मक परिवर्तन लाने वाले हो सकते हैं। अध्यात्म के द्वारा शांति रहती है। कषाय कम पड़ने से शांति मिल सकती है। शांति हमारे भीतर ही है। बाहरी साधनों से मात्र सुविधा मिल सकती है। कामना ज्यादा हो तो आदमी दु:खी बन सकता है। कामना को कम कर दें। शांति भीतर खोजें। हम शांति को पाने के लिए साधना करें। आध्यात्मिक आराधना करें तो भीतर की शांति मिल सकती है। पूज्यप्रवर ने अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को समझाकर स्थानीय लोगों को स्वीकार करवाए। मुनि कुमार श्रमण जी ने पूज्यप्रवर की अहिंसा यात्रा के बारे में विस्तार से समझाया। संत जहाँ जाते हैं, गंगा स्वयं वहाँ आ जाती है। जैन साधु की दिनचर्या के बारे में समझाया। संत, नदी, पेड़ और सूरज किसी एक जाति-धर्म के लिए नहीं होते, सबके लिए होते हैं। अच्छी बात किसी भी धर्म से स्वीकार की जा सकती है। पूर्व विधायक मोतीलाल मीणा, जिला उप-प्रमुख बाबूलाल मीणा, सवाईमाधोपुर चेयरमैन विमल महावत ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भाव अभिव्यक्त किए। कैलाश मीणा ने भी भावना व्यक्त की। रवांजना जैन समाज से सुरेश जैन ने भाव व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म रक्षा करता है। धर्म की कला सबसे बड़ी कला है।