आदमी असद् भावों से सद् भावों की ओर आगे बढ़े : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आदमी असद् भावों से सद् भावों की ओर आगे बढ़े : आचार्यश्री महाश्रमण

आदर्श नगर, सवाईमाधोपुर,
13 दिसंबर, 2021
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज सवाईमाधोपुर के आदर्श नगर क्षेत्र में पधारे। पूज्यप्रवर ने स्थानीय श्रावक-श्राविकाओं को सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई। तेरापंथ के राजा ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में कहा गया है कि पुरुष अनेक चित्तों वाला होता है। हमारे भीतर भाव जगत हैं। विभिन्‍न भाव उसमें सन्‍निहित हैं और वे भाव उभरते भी हैं। जैसे चित्रपट पर चित्र। कभी आदमी शांति में बैठा दिखाई देता है, तो कभी वह गुस्से में भी दिखाई देने लग जाता है। कभी अहंकार की भाषा बोलता है, तो कभी विनयपूर्ण व्यवहार भी कर लेता है। कभी सरलता के साथ पेश आता है, तो कभी माया-छलना का व्यवहार कर लेता है। कभी संतोष की स्थिति में तो कभी लोभ में भी आ जाता है। यों विभिन्‍न विरोधी भाव भी हमारे मन रूपी चित्रपट पर आ जाते हैं। मन या भावों के कारण से आदमी दु:खी भी बन जाता है। तो कभी सुखी भी बन जाता है। संस्कृत श्‍लोक में कहा गया है कि मन प्रमाद में रहता है, तो कभी प्रमाद के कारण से अनेक विकारों में आ जाने से दु:खी हो जाता है, मन में शांति नहीं रहती है। मन वश या संयत में रहता है, तो वे दु:ख भी उसी प्रकार दूर हो जाते हैं, जैसे सूर्य का ताप पड़ने से सर्दी दूर हो जाती है। हमारा मन, चित्त, भावधारा, लेश्या, अध्यवसाय ये भाव जगत की एक शृंखला है। हमारे भाव शुद्ध-निर्मल रहें। भाव-भाव के कारण आदमी अधोगति का आयुष्य बंध हो ऐसी स्थिति में जा सकता है। भाव-भाव से ऊर्ध्वगति में जाने के लायक भी बन सकता है। जो एक छोटा सा प्राणी है, भाव से सामने नरक में जाने का आयुष्य बंध कर लेता है। हम संज्ञी प्राणी हैं। जिसके पास मन होता है, वो ही प्राणी ज्यादा पाप करता है और ज्यादा धर्म भी कर सकता है। जिन प्राणियों के मन नहीं है वे न ज्यादा पाप कर सकते हैं और न ज्यादा धर्म भी कर सकते हैं। साखी नरक में जाने लायक पाप आदमी कर सकता है, तो स्वयं में सर्वार्थसिद्ध में जाने के लायक या मोक्ष में जाने के लायक धर्म साधना भी आदमी कर सकता है। एक अपेक्षा से सबसे बढ़िया प्राणी आदमी होता है। आदमी चौदहवें गुणस्थान तक पहुँच सकता है, ऐसी साधना मनुष्य के सिवाय इस सृष्टि का कोई भी प्राणी नहीं कर सकता। आदमी के पास दिमाग भी है। कितने-कितने आविष्कार किए हैं। आदमियों में अधम मनुष्य भी मिल सकते हैं। जितनी हिंसा-पाप मनुष्य कर सकता है और किसी प्राणी के लिए करना मुश्किल है। धर्म का संदेश है कि अधमता दूर हो। श्रेष्ठता उजागर हो, धर्म का विकास हो, अधर्म का नाश हो। आदमी असद् भावों से सद्भावों की ओर आगे बढ़े। आदमी हिंसा से अहिंसा में, बुराई से अच्छाई की ओर आगे बढ़े। मुख्य नियोजिकाजी ने कहा कि भारतीय परंपरा में संतों को उच्च स्थान दिया गया है। पुराने समय में राजा- महाराजा ॠषियों-मुनियों से अपनी समस्या का समाधान प्राप्त करते थे।