साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी ॠजुप्रभा
आचार्यश्री तुलसी ने पंचसूत्रम् में लिखा है‘न हि कृतमुपकारं साधवों विस्मरन्ति।’ साधु कृत उपकारों को विस्मृत नहीं करते। वैसे ही मेरे जीवन में अनेक व्यक्तियों का उपकार रहा है। उसमें से एक साध्वी चंद्रिकाश्रीजी भी रहे हैं। संस्था प्रवेश से दीक्षा तक आपकी मेरे पर अत्यंत वात्सल्य भरी कृपा रही है। सरदारशहर में कंठस्थ Teacher, लाडनूं में संस्था में आपका प्रवास काल तथा दीक्षा के बाद नवदीक्षित के रूप में आपको साथ रहना। मेरे स्मरणीय क्षण बन गए। विशेष रूप से नवदीक्षित के रूप में साध्वी जिनप्रभा जी के संरक्षण में रहने का मौका मिला तब आप मेरा प्रतिक्रमण सुनते, मेरे बैठने, उठने, खाने, पीने, कपड़े पहनने का भी विशेष ध्यान रखते थे। आपका वह ॠजु ॠजु कहकर पुकारना, ये छोटी है, ये छोटी है कहकर हर बात में लाड़ रखना। मुझे सदा अह्लादभरा लगता। आपके वे स्वर आज भी सदा कान में गूँजते हैं कि(1) तुम भी कुछ लाती तो हमें अच्छा लगता अर्थात् (दसवें कंठस्थ कर गुरुदेव से कल्याणक पाना)। (2) दूसरी अगर ठिकाना जमाना हो तो कभी किसी के सामने रोना मत। (3) तुम्हारी चिंता हमें सदा रहती है। आपका वह हँसता-खिलता चेहरा, कार्यकुशलता, फुर्तीवाला काम, सेवाभावना और साध्वी जिनप्रभा जी के समाधि में विशेष योगभूत बने रहना। ये विशेषताएँ मेरे स्मृति पटल पर सदा अंकित रहती है। आपकी ये विशेषताएँ सचमुच प्रेरणादायक है। अंतत: आपकी आत्मा सदा ऊर्ध्वारोहण करती रहे, शीघ्र ही मोक्षश्री का वरण करें। आपके गुणों को हम आत्मसात कर सकें ऐसी शुभाशंसा मंगलभावना है।