साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
गुरुकुलवासी - गुरुदिलवासी
साध्वी विधिप्रभा
हँसता-खिलता था उपवन, चंद्रिकाश्री का जीवन
भैक्षवगण में आकर होऽऽऽ, सबके दिल में छाई रे।
सहज सरल जीवन तेरा, रहती थी अपने में लीन
चेहरे पर हरक्षण मुस्कान, वाणी मधुरी थी ज्यों बीन
तेरी मनहारी सूरत होऽऽऽ, सबके मन को भाई रे॥1॥
ज्ञान और स्वाध्याय रुची, रग-रग में था शुभ संस्कार
वय छोटी पर काम बढ़े, सैनिक बन रहती तैयार
गुरु की करुणा से होऽऽऽ, गण महिमा महकाई रे॥2॥
कृपासिंधु श्री महाश्रमण बरसाई नित कृपा अपार
ममतामूरत महाश्रमणी से, पाया स्नेहिल उपहार
गुरुकुल वासी बन होऽऽऽ, गुरुवर दिल में छाप जमाई रे॥3॥
व्याधि असाध्य भले आई, तेरी समता से हारी
समाधिस्थ देखा हरपल, ओम् भिक्षु से इकतारी
जयपुर नगरी में होऽऽऽ, अंतिम झलक दिखाई रे॥4॥
लय : जीवन है पानी की बूँद----