साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी पुष्यप्रभा
जन्म के साथ ही व्यक्ति महायात्रा के महापथ पर यात्रायित हो जाता है। यात्रा के इसी दौर में साध्वी चंद्रिकाश्री जी की साध्वी दीक्षा और मेरी समणी दीक्षा बीकानेर में साथ में हुई। दीक्षा दिन पर जब मैं उन्हें वंदना करने जाती तो वही हमेशा यही कहती आप मुझे वंदना मत किया करो हम तो सहदीक्षित हैं। हम अपनी रजत जयंती साथ में मनाएँगे। साध्वी दीक्षा के कुछ साल बाद मुझे थॉयराइड हो गया। डॉक्टर ने दवा लेने का परामर्श दिया। किंतु चंद्रिकाश्री जी यही कहते आप दवा शुरू मत करो। नियमित व्यायाम व अनुप्रेक्षा से धीरे-धीरे ठीक हो जाएँगी। शायद उनके कहने का ही परिणाम था कि मेरी थॉयराइड बिना दवा के ठीक हो गई। जीवन एक सुंदर कविता ही नहीं बल्कि एक लंबी कहानी है, जिसकी प्रत्येक किश्त महत्त्वपूर्ण होती है। व्यक्ति अपने गुणों के सौंदर्य से इसे सजाता है, सँवारता है किंतु जीवन में घटित होने वाली घटना को रोका नहीं जा सकता। साध्वी चंद्रिकाश्री जी के जीवन में घटित होने वाली अनायास घटना से एक बोध पाठ प्रस्तुत कर दिया। उनकी आत्मा हमेशा आध्यात्मिक विकास पर आरोहण करती रहे, यही मंगलकामना।