साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी मधुस्मिता
मुहूर्त ज्वलितं श्रेयं न च धूमामितं चिरं - इस उक्ति को चरितार्थ करने वाली साध्वी चंद्रिकाश्री जी ने जागरूक जीवन जीकर अपने गुण सुमनों की खुशबू संघ सदन में बिखेरी। गुरुकुलवास में रहकर अपने सौभाग्य सूर्य को चमकाया। अपने साझपति शासनश्री जिनप्रभा जी की मनोनुकूल सेवा करके तथा वर्ग के प्रति दायित्वशील रहकर उनको निश्चिंत बनाया। स्वयं तत्त्वज्ञान में निष्णात बनी। दूसरों को समझाने की कला में कौशल प्राप्त कर अनेक बहनों एवं साध्वियों को भी लोक की शेर कराने में दक्षता हासिल की। वे किसी भी कार्य को स्फूर्ति के साथ संपादित करने में समर्थ एक कलाकार साध्वी थी। उनकी पुण्याई प्रबल थी, जिसकी बदौलत असाध्य बीमारी में पूज्यप्रवर की महर नजर से उनकी सेवा परिचर्या अहोभाव से की गई। भयंकर कष्ट के क्षणों में समभाव की साधना कर उन्होंने सुख शय्या में शयन किया। अपनी विनम्र प्रकृति के कारण उनकी आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती हुई चिर शांति को प्राप्त करें।