साध्वी चंद्रिकाश्री जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी सुमतिप्रभा
किसी विचारक ने लिखा हैजिंदगी से आप जो भी बेहतर से बेहतर ले सको, ले लो, क्योंकि जब जिंदगी लेना शुरू करती है तो साँसें भी नहीं छोड़ती। साध्वी चंद्रिकाश्री जी ने संयम-जीवन को स्वीकार कर अपनी जिंदगी से सबसे बेहतर चीज ले ली। इस दुर्लभ मानव जीवन को उन्होंने सार्थक बना लिया। शासनश्री साध्वी जिनप्रभा जी के संरक्षण में लगभग साढ़े पाँच वर्षों तक हमें साथ रहने का अवसर मिला। वे एक कर्मठ साध्वी थी। मात्र पंद्रह वर्षीय साध्वी जीवन में उन्होंने साधुचर्या के अनेक काम सीख लिए। उनमें कार्य करने का हौसला था, जज्बा था। जब कभी मेरे सामने साधु-साध्वियों की भक्ति करने का प्रसंग आता तो वे बड़े उत्साह के साथ आगे होकर कार्य करती थी। तत्त्वज्ञान के क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ थी और दूसरों को समझाने की शैली भी अच्छी थी। गीत-गायन में मधुरता तो प्रारंभ से ही थी, इन वर्षों में तो गीत-रचना भी सुंदर करती थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था, अचानक असाध्य रोग ने जकड़ लिया। इतनी विकट स्थिति में भी उन्होंने बहुत समता भाव रखा। बढ़ते-चढ़ते परिणामों के साथ उनकी संयम यात्रा संपन्न हुई। मैं उनके भावी आध्यात्मिक विकास की मंगलकामना करती हूँ।